पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१०१

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विद्वलन का बिलगे कि राम ने रावण को मारा" , अर्थात् "न" और "को' को वे महाशय "राम" और "शवस" के साथ मिलाकर लिखा, न कि अलग करके । पंडितवर गोविंदनारायण मिश्र ने इस विषय पर विमति-विचार' नामक एक छोटी-सी पुस्तक लिख 'ढाली है, जिसमें उन्होंने बड़ी विद्वत्ता के साथ सिद्ध किया है कि ने, से, के में इत्यादि शब्द संस्कृत और प्राकृत के विभक्ति-प्रत्ययों से ही निकले हैं। परंतु यह मान लेने पर भी को कैसे कह सकता है कि ये कारक शब्द उक्त प्रत्ययों की भाँति अपने मुख्य शब्द (संज्ञा या स बनाम) के साथ ही सटाकर लिखे आयें ? संस्कृत में शब्दांश होते हुए भी वे हिंदी में पृथक् शब्द होने का गौरव प्राप्त कर सकतें थे और कर भी चुके हैं। हिंदी का रूप और ढंग संस्कृत से भिन्न है और उसमें इन तगड़ों को स्थान देने से एक अनावश्यक ऋठिनाई उपस्थित करने के सिवा कोई भी लाभ नहीं। "राम ही का भाई", "कृपा ही ने सुना", "मुसी को दो", "तुम्हीं से कहा", इत्यादि व्यवहार से स्पष्ट विदित होता है कि हिंदी में कारक-शब्द संज्ञा और सर्वनाम से अलग ही लिखे जाने चाहिए, नहीं तो उनके बीच एक तीसरा शब्द ( प्रत्यय ही क्योंकर पा जाता? इन प्रयोगों को अपबाद (Exceptions) कहना ठीक नहीं, क्योंकि हिंदी में अब तक उनका शब्दांश माने जाने का नियम स्थिर ही नहीं हुश्रा है। फिर कोई शब्द या वाक्य उधत करने में उसे उलटे कामाची ( Inverted commas) में बंद करने की रीति हिंदी में भी प्रचलित हो गई है, अतः कारकों को मूल-शब्द के साथ लिखने में अहाँ कोई मूल-शब्द उद्धृत करने की आवश्यकता होगी, वहाँ कारक को भी उलटे कामाओं में वृधा ही बंद करना पड़ेगा। यथा "राम ने रावण को मारा", इस बाक्य में "" और "को" को "राम" और "दावर के साथ मिलाकर लिखने की प्राचश्यकता