पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१०३

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                  भूमिका

बड़े उत्सुक रहा करते हैं ! वे इतना तक नहीं विचारते कि यदि हमारे नामी लेखकगण भी इस लिंग-भेद को नहीं समझ सकते, तो इसमें किसका दोष है। वास्तव में यह "भूले" केवल समालोचको के मस्तिष्क में चक्कर खाया करती हैं और कहीं उनका अस्तित्व ही नहीं। यह देखने के लिये कि ऐसी "भूले" हमारे-जैसे अल्पज्ञ ही किया करते हैं, या भाषा के मर्मज्ञ लेखकों के विषय में भी यह कहा जा सकता है, हमने "सरस्वती" पत्रिका के प्रथम,भाग के पृष्ठों को उलट पलटकर देखा,तो एक, दो, तीन की बात नहीं, वरन एकदम सभी लेखको के लेखों में वैसे प्रयोग पाए गए। कुछ उदाहरण हम नीचे देते हैं- (१) अतुल पैनुक संपत्ति के नाशकारी (पृष्ठ ४ कालम १) बा० राधाकृष्णदास। (२) अर्जुन मिश्र ने भावदीय नामक टीका बनाई (पृ० २५ का० २) पं० किशोरीलाल गोस्वामी। (३) इसकी प्रस्तुत प्रणाली आश्चर्यजनक है(पृ० २८ का० १) बा० श्यामसुंदरदास बी० ए० । (४) सरस सरसी (पृ० २० का० १) बा० कार्तिकप्रसाद खत्री । (५) कुतुब मीनार...बनी थी(पृ० ९८ का० २) बा० काशीप्रसाद जायसवाल । (६) तीव्र बुद्धि (पृ० १८८ का० २) बा० दुर्गाप्रसाद बी० ए० । (७) शोचनीय अवस्था (पृ० १९७ का० १) पं० जगन्नाथप्रसाद त्रिपाठी । (८)निम्नलिखित चिट्ठी ( पृ० १९७ का० १)बा० केशवप्रसादसिंह। (९) ऐसी नाथ मुलम नहिं बानी (पृ० २१६ का० २)बा० सीताराम बी० ए० । (१०) इनकी मृत्यु काशी में हुई (पृ० २४२ का० २) बा० मनोहर लाल खत्री ।