पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भूमिका नहाय कान्दिदी को अबदाल ससिमान्त मल्ल दे पायो यहि शख अावी सुन मेरे बुझ । सिव को जगाय ध्यान चाारे पर कीबोमान: करि कछु अनुमान मेरी अरेर झीनो रुख ! दोष सब मोहिदियो मरीना प्रतीकियों दृध मारमार पियो सवत है मेरी सम्व। . पूछति राधे अहो तुम को हम है हरि तौ बसी कादन आय के । है वानर माह पतातहि जामिन न्याल घलो मद्धघाय के । मंड नहि मानप्रिया बरसाने में तो बरसो घराय के नाहिन बारि भने ससिमाल हात गचंदन को हराय के । भूमि अकास विचित्र पन्जा दिसि डोरि अयारि को देख बनायो तौलन चल्यो तिया मुखवंद औ चंद पितामह अापू सरोहात्यो। चंद पला उनि ऊँचो भयो विधिनै तब एक कियो मनमायो: दीन्हे दाय नछन्त्र सबै सिरमौर नबी न बराबरि पायो । लव-कुश चरित्र संवत् १३२५ मे अलीगढ़ में हमने एक सास परिश्रम करके लव-कुशचरित्र-नामक पृष्ठों का पद्य-मंच लिस्ना : यह प्राचीन प्रथा का ग्रंथ है, जिसका "जहाँ अनम जेहि दीन्ह विधाता, तेहि कुस्त्व धरम ताहि सुखदाता" मूल सूत्र (otro) है ! उस समय भी हमारा यह सिद्धांत न था, परंतु पंथ की कथा के अनुसार यही उसका मूलसूत्र रहा । इसकी कथा यह है कि रामजेद्र अब राबराह को जीतकर अयोध्या में राज्य करने लगे और सीता बटोरगर्भा हई, नद उन्हें हनुमान् द्वारा यह पता लगा कि एक रयत उनके सीता-ग्रहण को अनुचित समझता है । इससे उन्हें जान पड़ा कि उनकी लोक में निंदा है। इस विचार से उन्होंने सीता को वाल्मीकि आश्रम के पास लक्ष्मण द्वारा जंगल में छोड़वा दिया और वे ऋषि के आश्रम से रहने