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मिश्रबंधु-विनोंद

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मिश्रबंधु-विनोद लगी । थोड़े ही दिनों में उनके कुश-लव-नामक दो यमज पुत्र उत्पन्न हुए । इन बालकों ने शास्त्रों में पूर्ण पांडित्य प्राप्त करके शस्त्रों में भी अद्वितीय योग्यता संपादित की। कुछ दिनों में रामचंद्र ने अश्वमेध किया। अश्व-रक्षा करते हुए शत्रुघ्न प्राश्रम को भी गए। वहाँ लब में वोड़ा बाँधकर उनसे युद्ध किया, परंतु पूरी बहादुरी से लड़ने पर भी वह शत्रुओं द्वारा बंदी कर लिए गए । पीछे सीताजी ने कुश को भी युद्धार्थ भेजा, जिन्होंने रिपुदल विमर्दित करके लव का मोचन किया । जब सीताजी ने जाना कि राम-दल से पुत्रों का युद्ध हुआ, तब उन्होंने भविष्य में युद्ध शांत होने के लिये उन्हें शिक्षा दी, परंतु सब बातों पर सोच-विचार करके अंत में लड़ने की आज्ञा भी प्रदान की। इन बालकों में क्रमश: लक्ष्मण तथा भरत को ससेन पराजित किया । जब राम लड़ने गए, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि युद्धकर्ता उन्हीं के पुत्र थे। इस पर वें मोहित होकर रथ में लेट गए और लव ने शेष दल को पराजित किया । यह सुन सीताजी युद्ध-स्थल को गई और उनके पुण्य प्रताप से सब सैनिक फिर से जी उठे। तदनंतर वाल्मीकि ने सीता के सतीत्व की शपथ खाई और मैथिली ने पाताल में प्रवेश किया। इस स्थान पर बालकों की सांत्वना के लिये भरत ने परमेश्वर के विराट रूप का वर्णन किया। तब राम ने सपुत्र अयोध्या जाकर थोड़े दिनों में अपने पुत्रों एवं भतीजों में राज बाँटकर भ्राताओं समेत सरयू-प्रवेश किया। कुश-लद ने भी बहुत काल - पर्यंत राज्य करके सुरपुर पयान किया। यह ग्रंथ प्रकाशित हो चुका हैं । उदाहरण बन ललै उपजत त्रास प्रेत निवास मानहु है सही; "बहु सिंह-व्याघ्र-वराह डोलत उग्रता न परै कहीं। सन-सन बयारि बहै चहूँ दिसि दुसह श्रातप भानु को जल-हीन ताल मलीन तरु लहि मनहु दाह कृशानु को ।