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मिश्रबंधु-विनोंद

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मिश्रबंधु-विनोद सिंधुवार के सुमन मुकुतमाला सम धारे । मधु फूलन ही सकल मनोहर गात सँवारे । अच्छोज भार भावक झुकी बात सूर सम अरुन पट ; धरि कुसुमित गुच्छन पात जुत भई नमित लतिका निपट । स्मर धनु ज्या मनु दुतिय बकुल माला कटि धारै ; .. छुद्र घंटिका सरित चलत तेहि खसत सम्हारे । अधर बिंब ढिंग स्वास सुगंधित हित ललचाई: तृष्णा पूरित बार-बार मधुकर मडराई। हरि तासों मृग छौना सरिस बैचल नैन नचावती; निज क्रीड़ा पंकज सो सकुचि छिन-छिन ताहि उड़ावती । अन्य रचनाएँ संवत् १६५८ अथवा १९५६ में "कान्यकुब्जों की दशा पर विचार" नामक २८ पृष्ठों का लेख लिखा गया, जो अजमेर के कान्यकुब्जसुधारक नामक पत्र में निकला । संवत् १६६० में "विज्ञापनों की धम" नामक १२ कालमों का हास्य-प्रधान शिक्षा-प्रद लेख निकला। संवत १९६१ में पारस्परिक राजधर्म एवं “जापानी शरता का एक उदाहरण" नामक प्रायः २५ कालमों के दो लेख लिखे गए। इसी संवत् में गोस्वामी तुलसीदासजी पर समालोचना के नोट बने । इनमें से कुछ नोट संवत् ५८ में बन चुके थे । द्वितीय संवत् में वह प्रायः पूर्ण हो गए, पर अधिक पठन-पाठन के विचार से समालोचना नहीं रची गई । इसी साल * मुकहिमा-नामक एक नाटक उठाया गया, जिसके दो अंक समास हुए, परंतु फिर यह अब तक आगे नहीं बढ़ाया गया और ज्यों-का-त्यों

  • नेत्रोन्मालन नाम से अब यह नाटक भी छप गया है।