पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/११५

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সূলিঙ্ক चलो यह अति अदभुत संसार । बेई ससि सूरज तारागन वह व्योम विस्तार । वेई ध्रुव समाई वृहस्पति शुक्र चक्र सिजुमार वेई मेघ माल सौदामिनि इंद्रधनुस संचार । मनु बलि भरन कान्ह के आचत हे सब जोन प्रकार : नैसे हि अपनेहु सनमुन्द्र लखि संभ्रम होत असर। । संवत् १६६२ में सम्मिलित हिंदू कुटुंब के गुरा-छोप-धन में प्रायः १० पृष्ठों का एक लेख बना, जिसके पाँच खंडों में से दोषप्रदर्शक रखेड' सरस्वती में प्रकाशित हुआ ! पूनिया-नरेश राजा कमलानंदसिंह ने निश्चय किया था कि इस वर्ष की सरस्वतीवाले सोंस्कृष्ट लेख के रचयिता को वह स्वरूपदक देंगे। उन्होंने इसी लेख को उत्तम जानकर हम एक अच्छा स्वर्ण पदक सम्मानार्थ दिया। इसी साल या इससे कुछ पहले व्यय एवं मधमा कदि पर समालोचना-गर्मित लेख अयपुर के समालोचक पत्र में निकले। भूषण-ग्रंथावली इसके पीछे भूषण-ग्रंथावली नामक ग्रंथ लिखकर हमने काशी. नागरीप्रचारिणी सभापंथ-माला में छपवाया। इसमें भषण के ग्रंथ पर टीका लिखी गई थी। टिप्पणी-विभाग के साथ इसमें ऐतिहासिक विषयों पर विशेष ध्यान रहा। ग्रंथावली में शिवराज-भूपरा, शिवा-बावनी, यसाज-दशक तथा स्फुट कविता सम्मिलित हैं। व्यय आदि व्यय प्रायः ७५ फूटा कर लेख या पीछे से यह पुस्तकाकार छपा। इसमें भारत के ख़रचे से संबंध रखनेवाले संपति-शास्त्र के सिद्धांतों का उदाहरण सहित कथन किया गया था। इस पर भी समावारपत्रों में महा-सुनी रही। संवत् १९६३ में जीवन बीमा के