पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८४
मिश्रबंधु-विनोंद

________________

क मिश्रबंधु-विनोद सागर सो ज्यों चंद कमल सौ भो चतुरानन; भयो शिवा शिव पुन्य रूप ज्यो सुचन षडानन । तिमि पायो तेहि बालदत्त सुत गुरु गुनवाना। परम धीर गंभीर सुकवि सुजसी मतिमाना। तेहि नर वर के लघु सुत भए सिरमौरहु ससिभाल कक्षि; जे दीप दान सों मनु चहत करन परम परसन्न रहि । धन्य बसुधातल पै ग्राम है इटौंजा चारु , सब गुनधाम झामैं सज्जन क्सत है। राज करै भूप इंद्र विक्रम पँवार जहाँ , रेल तार-डाकघर सुंदर लसत हैं। डाकटर-बैड स्यों विराज पाठघर अहाँ, __पंडित-समूह बेद पथ सो रसत हैं। गुन को गुनो जन को धरम को मान होत. ," - पातक-समूह जाहि देखत खसत है। .. बिरची कपिल मुनि कंपिला बिसाल अति , : . आमैं कविराज सुखदेव अवतार भो। 'गंगा-तट-बासी तीन कंपिला के पाँडेनको , बिसद इटौंजा माहिं बास सुखसार भो। तिनमैं अजोध्या द्विज भयो हो प्रसिद्ध अति. .. जौन धन मान जत सजली अपार भो। ताकी दुहिता के पति मिश्र मुखलाल जू को, - तासु कछु संपति पै बेस अधिकार भो ।. .." हुतो अमोध्या सुवन बिनु ताके अनु ततकाल ... यत्र-तत्र श्री. है गई कछु पाई मुखलाल। कमला क्यों घिर है सकै मासु चंचला नाम ; .:: चेचन्नता बस गई अगुणज्ञा यह दाम