पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१२१

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भूमिका हो मुखलाल महायुनमाळ दिसात सदा जेहि पुन्य बगारी, छोटेन को मन रंजन के गुरु लोगन को नहि सासन टारो। बालगोविंद सहोदर पै मुश्शेिष अपुरब प्रेम पसारी; पै तछहूँ विधि की गति स न बसो सुन बस चलावनहारी। गुनि गुरुभ्राता भाव बाबमोविंद बिचारी: . एक मात्र निज सुदन कालदत्तहि पन धारी। पहिनी द्वारा दिया सौषि भाना-माया को : दृढ़ता सो सब छोरि प्रेम-बंधन माया को। तब लगे इटोमा में रहन का संग पितु सुजस घर जिन तहाँ सुकृत फल चारि सुत लहे चित अानंदकर । हम कछु दिन विद्या पदी विसद इटौंआ ग्राम फेरि सामनऊ में पढ्यो गुरुभ्राता के धाम ! .. करत वकालत हैं तहाँ गुरुभ्राता मतिमान . चख-पोडा यस तहँ कियो औषध पितु सविधान है महि-प्रबंध कछु दिन गए सौपि सेवकन चार : लगे लखनऊ में रहन पिता सहित परिवार । डेपुटी कलेक्टर को पर्दा सिरमौर पाय , है यमो पुलीस-मतान शुभ काल मैं : . महाराज विश्वनाथसिंह की कृपा सौ रे , भयो है दिवान छत्रपुर गुनाक में।

  • खेद है कि वर्षे हुए जन गुरुमाता पं. शिवायहारांलाल जी का देहांत हो मया। .

इस समय शिरमौरजी संयुकप्रदेश में सहयोग समितियों के प्रतिष्ठित . रजिस्ट्रार पद पर आसीन है।