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मिश्रबंधु-विनोद

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मिश्र,धु-विनोद *सखिभाल करि कै वकालत बिसाल पुनि , . .. ..... पायों है सुपद मुंसफी को कछु साल मैं अापुस में प्रेम परिपूरन बड़ाय हम , . सदा ही लगायो मन कविता रसाल मैं। .. चम राज-काल सुखप्रद जन नायो । संगत बसु रस खंड चंद सावन मनभायो। सनिबासर सित पच्छ चार एकादसि पाई : पर बूंदी-बारीस ग्रंथ बिरधन मन लाई । पितु-पद उर धरि सारद सुमिरि गनपति संभु प्रसन्न करि । इसा हैं मनाय विरचन लगे विसद ग्रंथ आनंद भरि ।। २२॥ स्फुट लेख संवत् १६६६ में अभी तक विनोद मे हो परिश्रम हुआ है। इन ग्रंथों एवं लेखों के अतिरिक्त सामयिक पत्र-पत्रिकाओं में और भी - कई लेख भेजे गए। थोड़े दिन हुए बाबु श्यामसुंदरदास ने हिंदी. कोविद रखमाला-नामक एक ग्रंथ रचा, जिसमें आधुनिक काल के . ४० उत्कृष्ट लेखकों के जीवन-चरित्र लिखे गए। उसमें उन्होंने हमारा भी उल्लेख करना उचित समझा। हमारे कई एक लेख सरस्वती, मर्यादा, भारतमित्र, वेंकटेश्वर-समाचार, कान्यकुब्ज-सुधारक, कान्य कुब्ज-हितकारी, स्त्री-दर्पण, काशी-नागरीप्रचारिणी-पत्रिका, . समालोचक, अभ्युदय, इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में समय-समय पर *प्रकाशित होते रहे। .. मुख्य कविगण . इस भूमिका को समाप्त करने के प्रथम हम उत्कृष्ट अथवा रचनाओं

  • ससिमालजी इस समय जजी की ग्रेड में हैं और महाराज छत्रपुर के दीवान हूँ। . .