पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१२३

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द्वारा प्रलिद्ध अधिश मृत कवियों एवं लेखकों की एक नामावली लिख देनी नी दचित समझते हैं। ऐसे महानुभावों में से प्रायः 100 वज्यों के नाम प्रथम प्रकाश के सातवें अध्याय में या नए है। उनके अतिविक इस नामावली में नौलिखे महाशयों के वाम चिले जा सकते है. नरहरि, बीरबल, पालम, तानसेन, दादूदयाल, बलभद्र मिश्र, सुंदरदास, घासीरास, हरिकेशा, नेवाड, शेत्र, चंद, उदयनाथ, श्रीपति, भारदास, कप्ता, अधिराज, दुलपतिराय, देसाधर, सोमनाथ, रसजीन्न, गुमान मिन्न, कुमारमणि भट्ट, हंसराज वनशी, शंभुनाथ मिश्र, महाराशा भगवंतराय लीची, शिशोर, मनीराम, संचित, चंदन, 'देवकीनंदन, मतियार, येनो, सम्मान, दच, मून, दीनदयाल गिरि, देवकाष्ठजिद, नदीन, अनेस, महाराजा रघुराबसिंह, गुल्लायसिंह, लेखराज, शंकर, गदाधर भट्ट, औद, लछिराम, ललित, शिव.. सिंह सेंगर और द्विजराज लाविहारी ! समाति विनोद की इस भूमिना को हम अन्न यहाँ समान करते हैं। श्राकार में यह कुछ बढ़ गई है, परंतु इसमें लिखी हुई सब बातों का लिनना हमें उचित जान पड़ा, ही क्यों, अपनी समझ में तो हमने इसे वृर घटाकर ही लिखा है। इसी प्रकार से थोड़े में लिखने का यह ढंग ग्रंथ-गर में स्थिर रहा है। कृत्रियों के उदाहरण देने में भी संक्षिप्त रीति का अवलं बन्द किया गया है। अधिक उदाहरण . देने से ग्रंथ में रोचकता' कुछ बढ़ जाती, किंतु उसका आकार विन कोई विशेष ज्ञान वृद्धि कराए भी बृहत् हो जाता। इन कारणों से हमने इस ग्रंथ का आकार हर स्थान पर घटा हुधा रस्सा है। जस प्रायः५० या ६० कवि लेकर दूसरा मंथ बनाने का हमें सामान्य पास होगा, तर समालोचना भी भारी और यथासाध्य पूर्ण लिली