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मिश्रबंधु-विनोद

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मिश्रबंधु-विनोद . अँगरेजी देवात् यही काल अंगरेजी साहित्य के भी प्रारंभ का है, अतः ये दोनों भाषाएँ प्रायः समकालीन हैं । पूछा जा सकता है कि अंगरेज़ी को अधिक उन्नति क्यों हो गई और हिंदी में वैसे उपकारी ग्रंथ क्यों नहीं बन सके। इसके अनेक कारण हैं जिनमें मुख्य थे हैं कि एक तो हमारे यहाँ सांसारिक पदार्थों को तुच्छ मानकर लोग अधिकांश धार्मिक विषयों ही की और विशेष प्रवृत्त होते रहे हैं, दूसरे इस देश में प्रेस के अभाव से लोगों के विचार दूर-दूर तक प्रकाशित नहीं हो सकते थे और तीसरे हम लोगों का बाह्य संसार से बहुत कम संपर्क रहा, अतः सांसारिक जातीय होड़ के प्रभाव हम पर कम पड़े । इसी भाँति दया-बाहुल्य के कारण जीवन निर्वाह-संबंधी होड़ का भी सिक्का यहाँ बहुत दिनों तक न जमा, लो हम लोगों का सादृश क्या प्रायः बहुत कम झुकाव सांसारिक उन्नतियों की ओर हो सका । इसका कुछ कथन भूमिका में है। इतिहास का समय-विभाग हिंदी-भाषा-लेखन काल के इस ग्रंथ में आठ विभाग किए गए हैं, जिनका कथन यहाँ एक चक्र द्वारा किया जाता ।इसी चक्र से उस समयों की रचना-शैली एवं भाषा का भी कुछ ज्ञान होगा। इसमें लिखे हुए चिह्नों का प्रयोजन यह है-..: .. . . . . . = प्रायः अभाव : . xx = महाशैथिल्य . . . V= कुछ बल . बल . ". Wy = प्रबल W = बहुत प्रबल