पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९२
मिश्रबंधु-विनोद

________________

मिश्रबंधु-विनोंद प्राचीन कवि संवत् ८६० के लगभग किसी ब्रह्मभट्ट कवि ने खुमान-रासानामक ग्रंथ महाराजा खुमान की प्रशंसा में रचा । भाग्य-वश सं० १६७६ के खोज में भुवाल कवि-कृत भगवद्गीता-नामक संवत् १००० का रचा हुआ एक ग्रंथ मिला है जिसमें समय साफ़ दिया है । इस ग्रोथ रत्न से हिंदी भाषा के इतिहास की प्राचीनता निश्चय-पूर्वक सिद्ध हुई है । संवत् ११३७वाले कालिंजर के राजा नंद भी कवि साने गए हैं। सुप्रसिद्ध लेखक नाथूरामजी प्रेमी ने 'हिंदी जैन-साहित्य का इतिहास' नामक एक गवेषणा-पूर्ण लेख लिखा है जिसमें उन्होंने विक्रम-द्वादश शताब्दी से घटारहवीं शताब्दी तक के कुछ हिंदी जैनकवियों का परिचय कराया है। उनके अनुसार संवत् ११६७ में जैनश्वेतांबराचार्य जिनवल्लभ सूरि हुए जिनका उसी वर्ष देहांत भी हुा । इनका 'वृद्ध नवकार' नामक ग्रंथ हिंदी-जैन-साहित्य में सबसे प्राचीन था । संवत् ११७५ के लगभग महाराष्ट्र में कल्याणीनगर में चालुक्य-वंशी सोमेश्वर-नामक एक राजा हुया । यह 'सर्वज्ञभूप' कहलाता था । इसने हिंदी में भी कविता की । मसऊद एवं कुतुबअली ३३८० के लगभग दो मुसलमान कवि हुए और ३१६१. में साई दान चारण ने समंतसार ग्रंथ रचा । अकरम फ़ैज़ ने १२०१ . से १२५८ पर्यंत वर्तमाल-नामक ग्रंथ रचा तथा वृत्तरताकर का भाषानुवाद किया । यह कवि जयपुर-नरेश के यहाँ था । प्रसिद्ध कवि बंद बरदाई का कविता-काल १२२५ से १२४६ पर्यंत है । इस वर्णन से प्रकट है कि चंद से प्रथम दश कवियों के ओ नाम अब मिलते हैं, उनमें तीन मुसलमान थे । दूसरों की भाषा पर इतना ध्यान देना उस समयवाले मुसलमानों के विद्याप्रेम एवं उन्नति को प्रकट करता है। आजकल बहुत-से मुसलमान लोग ऐसे संकीर्ण-हृदय हैं कि भारतीय राष्ट्रमापा. केवल उर्दू को कहते हैं, परंतु जब उर्दू