पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९३
संक्षित इतिहास-प्रकरण


का जन्म भी नहीं हुआ था, तब भी उस समय के मुसलमान लोग उहादस्यय प्रकट करते हुए हिंदी में कविता करते थे। इन बातों से उत्रत श्रीर अवलत दशाऔ इसानों का अच्छा आनुषंगिक ज्ञान होता है।

चंद

चंद बरदाई लाहौर में उत्पन्न हुआ, जहाँ उस समय मुसलमानों का राज्य था, परंतु बाल्यावस्था से ही वह अजमेर में जाकर रहने लगा। यहाँ वह पृथ्वीराज का सखा एवं मंत्री हो गया। जब पृथ्वीराज को उसके नाना अनंगपाल ने दिल्ली का राज्य दे दिया, तब चंद दिल्ली में सम्मान-पूर्वक रहने लगा, यहाँ यह पृथ्वीराज का राजकवि एवं उनके तीन मंत्रियों में से एक हो गया। इसने रासो-नामक प्रायः २५०० पृष्ठों का ग्रंथ पृथ्वीराज की प्रशंसा का रचा, परंतु अनुमान किया गया है कि इसका थोड़ा-सा अंतिम भाग इस कवि के पुत्र अश्विन ने बनाया। रासो में प्राय: सभी रसों के उत्तम वर्हन है, जिनसे चंद की विशाल साहित्य-पटुता भली भाँति प्रकट है। इसकी रचना में सुप्रबंध-गुण खूब पाया जाता है। चंद्र के प्रथम का कोई भी मंथ अथवा छंद हमने नहीं देखा। चंद हमारे यहाँ का चासर है। चालर की उत्पत्ति चंद से २१४ वर्ष पोछे हुई, परंतु ये दोनों अपनी-अपनी भाषाओं के वास्तविक प्रथम कवि हैं। इन दोनों ने प्राचीन भाषाओं में उत्तम ग्रंथ रचे। इन दोनों की रचनाएँ परम मनोहर थी और वर्तमान समय के मनुष्य बिना विशेष प्रयत्न के इनकी भाषा समझ नहीं सकते। चंद ने श्राकार में चासर को प्रायः दूनी रचना की है और उत्तमता में इन दोनों की रचनाएँ प्रायः समान है। चासर को जैसे अँगरेज़ लोग अँगरेज़ो कविता का पिता समझते हैं, वैसे ही चंद भी हिंदी का जन्मदाता कहा जा सकता है।