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मिश्रबंधु-विनोद

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मिश्रबंधु-विनोद अन्य कवि महोबे का जगनिक चंद का समकालीन था । कहते हैं कि उसने सबसे पहले “चाल्हा" की रचना की, जो अब तक ठौर-ठौर ग्रामों में गाया जाता है। पर इस समय के आल्हा में जगनिक का शायद एक शब्द भी नहीं मिलता, केबल ढंग उसका है 'केदार कवि भी प्रायः इसी समय में हुआ और महाराज जयचंद के पुत्र शिवजी को संभा में बारदरबेणा-नामक एक अच्छा कवि हो गया है। ..' अतः चंद के प्रथम और उसके समकालिक कवियों में जल्हन को मिलाकर पंद्रह कचि विदित हैं । रासो के देखने से जान पड़ता है कि इस समय हिंदी काव्य का अरछा प्रचार था । प्रायः सभी राजदरबारों में भाषा-कवियों का मान होता था, यहाँ तक कि उदयपुर के महाराणा समरसी में पृथ्वीराज की बहन पृथा कुँचरि से अपना विवाह होने में पृथ्वीराज से जल्हन को हठ-पूर्वक माँग लिया था और उसे वे अपने दरबार में ले गए थे। अवश्य ही उस समय में हिंदी के बहुतेरे कवि हुए होंगे, पर उनके नाम तक अब ऐसे कालकवजित हो गए हैं कि उनका कहीं पता नहीं खंगता। चंद के पीछे जल्हन कवि ने रासो के अंतिम भाग को बनाया और ग्रंथ सुरक्षित रखा । अल्हन के पीछेवाले कवियों में भी बहुत्तों का अब भली भाँति पता नहीं लगता । अल्हन की भाषा चंद्रीय भाषा के समान है, परंतु उत्तमता में उसकी कविता चंद से समानता नहीं कर सकती । संवत् १२४७ में मोहनलाल द्विज ने पत्तलि-नामक ग्रंथ रचा । इसमें भगवान् के विवाह में नंद के . ज्योमार का वर्णन उत्कृष्ट छंदों में है। यह ग्रंथ संवत् १९७६ की . खोज में मिला है। कुमारपाल-चरित्र की रचना १३०० के लगभग हाई थी। कुमारपात श्रनहलवाड़े के राजा थे । संवत् १३२५ के लग मग दक्षिण में दामोदर पंडित ने मराठी-हिंदी-मिश्रित 'वरसहरण' . . .