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मिश्रबंधु-विनोद


समय से उसने पंडित-समाज में भी कुछ-कुछ मान पाया। इस महात्मा ने छंदों में प्रायः ४० छोटे-बड़े ग्रंथ रचे और ब्रजभाषा गद्य में भी एक अच्छा ग्रंथ बनाया। सो ये महात्मा गद्य के प्रथम लेखक हैं। इनकी गद्य-रचना उत्कृष्ट है। अब तक के अधिकांश क्या, प्रायः सभी कवि पाश्चात्य प्रांतों के वासी थे, परंतु इन महात्माजी के साथ पूर्वीय ऋवियों का भी प्रादुर्भाव होता है।

विद्यापति आदि

इस समय तक बिहार के किसी कवि का नाम नहीं मिला, परंतु ११४५ से महाकवि विद्यापति ठाकुर का रचना-काल प्रारंभ होता है। आप जाति के ब्राह्मण थे। आपने दो नाटक एवं कई ग्रंथ बिहा रीहिंदो में रचे। इनो रचना परम प्रशंसनीय है। आपने साधारण बोल चाल को आदर देकर अत्युत्तम रचना की है, जो पूर्वीय प्रांतों के गले की हार हो रही है। चैतन्य महाप्रभु इनकी रचना को बहुत पसंद करते थे। इनकी भाषा कुछ अधिक उन्नति कर प्राई थी। अयदेव, मैथिल और उमापति ने भी विद्यापति ठाकुर की ही रीति पर रचना की है। उधर राजपूताने में मीराबाई और महाराणा कुंभ कर्ण स्वयं कवि एवं कवियों के आश्रयदाता हो गए है। इसी समय गुजरात में नरसी मेहता हो गए हैं। इन्होंने भी हिंदी में कविता की है। संवत् १४५३ में नारायणदेव ने हरिश्चंद्र-पुराण-कथा की रचना की। इसी से भारत के धार्मिक पुनरुत्थान का समय प्रारंभ - होता है। स्वामी रामानंद का संवत् १४२५ के लगभग प्रादुर्भाव हुआ और १५५० के आसपास इनकी शिक्षाओं का बल फैलने लगा। दक्षिण में इस समय भानुदास भक्त हुए थे। वे मराठी और हिंदी दोनों में कविता करते थे। सेन नाई, भावानंद और कबीरदास इनके मुख्य शिष्यों में से थे जो हिंदी की कविता करते थे। इस समय तक भाषा और भी परिपक्व हो गई थी। महात्मा कबीरदास