पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ने उसका बहुत बड़ा उपचार किया। इन्होंने कोई पचास ग्रंथ बनाए जिनमें से १६ का पता लग चुका है। इनकी कहावत बड़ी ही होम्नी और दृष्टि अत्यंत पैनी यो, एवं साफ-साफ बातें सुनाने में के कुछ भी नहीं हिचकते थे। अपने रंग के ये ऐले पक्के थे कि काशी . में सदा रहते हुए भी मरते समय मगहर चले गए, क्योंकि काशी मैं मरने से पापी भी मोक्ष पाता और मगहर में मृत्यु होने से धार्मिक अनुष्य भी नरकगामी होता है, ऐसा बहुतों का विश्वास है। अतः कबीरकी ने कहा कि "मो कृचिरा ऋती मरे तो राम काज निहोर ? अस्तु । वीरदासनी की मात्र माध्यमिक हिंदी की पूर्व रूपवाली है ! इनका समय ३४७ के आसपास सिद्ध हुना है। इनके शिष्य मगोदास, धर्मदास और असगोपाल भी ऋवि थे तथा इनके पुत्र अमाल नै भी कविता की है। . संक्त १४२० में महारमा नामदेव छीपी और ११.३.मेंदार चमार भी मामी मन और लेखक हुए । हमारा खयाल था कि हिंदीकाव्य में प्रेम-कयात्रा का चलन मुसलमान-कवियों द्वारा चला है. पर सबसे पहले संवत् ३५१६ में राजपूताना निवासी दामो-नानक कवि ने लक्ष्मान पद्मावती प्रेम-कान्य की रचना की। विक्रम की सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में अर्थात् संवत् ११३१ में उपाध्याय ज्ञानसागर जैन ने उज्जैन के श्रीपाल नृपति का चरित्र नामक दंथ रचा। १२३ में चरणदास ने ज्ञानस्वरोदय ग्रंथ बनाया और १५४० में . हितसंप्रदाय के अलि भगवान् ने कविता की । आनंद का विषय है कि पंजाब के सुप्रसिद्ध धर्मसुधारक बाबा नानक ने भी हिंदी में काव्य किया ! इनके अनुयायियों में भागो चलकर गुरुगोविंदसिंहको ने भी हिंदी को अपनाया । अाज भी सिख लोगों में इसका कुछ-कुछ . अचार है और अब विशेषतया बढ़ता हुआ देख पड़ता है । संवत् ।