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मिश्रबंधु-विनोद

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मिश्र धु-बिनोद पाँच हजार पद देखने में आते हैं। महात्मा सुरदासजी हिंदी के बड़े ही नामी कवि हैं और हमने अपने हिंदी-नवरा में इन्हें ब्रहत्त्रयी में रक्खा है। इस महाकवि के अनेक वर्णन ऐले सुप्रबंधक और उत्तम है कि उनकी बराबरी हिंदी में किसी की भी कविता नहीं कर सकती । अन्य कचियों के प्रबंधों और वर्णनों का सम्मिलित प्रभाव प्रायः बहुत चमत्कारी नहीं हुश्रा करता, अतः अँगरेज़ लोग अपने यहाँ के नामी कवियों के सामने हमारे कवियों की महत्ता पूर्ण स्वाकार करने में आनाकानी किया करते हैं, पर सूरदासजी के प्रबं? को ध्यान-पूर्वक मनन करने से उन्हें मानना पड़ेगा कि हिंदीकविता में भी बड़-बड़े रत वर्तमान है। अष्ट-ड्राप । . सूरदासजी महाप्रभु वहभाचार्य के शिष्य थे । इनके अतिरिक्त कृष्णदास, परमानंददास और कुंभनदास भी महाप्रभुजी के शिष्यों में नामी कवि हुए हैं। चतुर्भुजदास, छीतस्वामी, नंददास और गोविंदस्वामी महामभुजी के पुत्र गोस्वामी श्रीविठ्ठलनाथजी के शिष्यों में मुख्य थे। इन्हीं पाठों को मिला कर गोस्वामीजी ने "Rष्ट-छाप" स्थापित की, जिस पर सरदासजी परम प्रसन्न होकर कहने लगे कि "यपि सोसाई करी मेरी आठ मद्धे छाप ।" इससे सूरदासजी की महानिरभिमानता सिद्ध है, क्योंकि उनके सामने अष्ट-छाप के अन्य सात कवि कुछ भी न थे। इनमें से नंददासजी सूरदास के पीछे अष्ट-छाप में सर्वोकृष्ट कवि थे। इस काल' (१९६०.. में वैष्णव संप्रदायों के प्राय सैकड़ों कवियों ने भी मनोहर कविता की है, जिसका हाल आगे लिखा जायमा। . . अन्य कविगा. इसी समय से सुप्रसिद्ध महात्मा श्रीर कवि श्रीगोस्वामी हरि देशहित च्या कविता-काल मारंभ होता है। इनके के बाद ८४. एद: