पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१३७

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संक्षिा इतिहास- प्रक सोर कविता का परा सामना करते हैं। यदि इनको अधिक बाखी मिल जाय, तो संभव है कि कविता में इनकी गहना सरदासजी के बराबर हो । सुना जाता है कि इनके समन बात में छिपे पड़े हैं। इनके अनुयायी लोग अपने नाम के साथ हिन जोड़ दिया करदे हैं। इनमें बहुतेरे उत्कृष्ट कवि हो रहा है। संक्द २१६३ में किसी चंद कदि ने हितोपदेश भ्रंथ बनाया और छीहत में १५७५ में पंचसहेल्दी नामक एक प्रेम कहानी कही यह कधि मारबाड़ का शान पड़ता है। संवत २८७ में लालचदार हलुकाई ने दशम स्कंध की कथा दोहा-चौपायों में लिखी। प्रसिद्ध कवि महापान नरहरि बड़ीजन का जन्म ३५३२ में हुश्रा था। १९३० से इन कविता-काद्ध प्रारंभ होकर १६६७ तक चला। इनकी श्रवस्था ३०५ वर्ष की हुई, जिसमें से ७ वर्ष इनका कविता काल है ! इनका अकबर बादशाह के दरबार में मान था। बिलग्राम के शाहमहम्मद और उनकी स्त्री वंश में भी इसी समय में कविता की थी। श्राब्लम का भो यही समय माना गया है। ___ स्वामी निपटनिरंजन का ऋविता-काल संवत् १९६५ से है १२१८ कृपाराम ने दोहों में हिलतरंगिणी-नामक एक उत्कृष्ट रीति-ग्रंथ बनाया और मलिक मुहम्मद जायसी में १९७५ से १६०० तक पात्रत-दसा नामी ग्रंथ रचा। इसकी कविता विशद और चदि सोहावने है। यचापि इसकी भाषा अन्य भारी ऋदियों के सामने कुछ ग्रामीण अवश्य है, तथापि इसके दर्शन सांगोपांग होने हैं। मीराबाई का कविता-काल ११० से १६०३ पर्यंत है। इन जोवन-यात्रा केवल ३० वर्ष में समाप्त हो गई, नहीं तो शायद इनकी कबिता बहुत ऊँचे दर्जे की होती तो भी इतने ही में इनका पद भाषा के भक्त कवियों में उस है। कुछ बोयों ने इन्हें महाराना कुंभकर्ण की स्त्री लिखा है, पर यह नितांत अशुद्ध है। नरोत्तमदासजी