पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१३९

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दाबो ने राममति पर विशेष ध्यान दिया और दो प्रष्ट भकिपूर्ण ग्रंथ निर्माण किए । यह प्रसिद्ध दादू-पंथ के प्रवर्तक । समयसमय पर इनके अनुयायियों (जिनमें सुंदरदास सक्षम है) अच्छी कविता की है। अन्य पंथियों की भांति इनके अनुयायी लोग मी अपने यहाँको रचनामा को प्रायः छिपा रखना ही श्रेष्ठ समझते हैं, पर हाल में इसके प्रयों को अमही छान-दीन हुई है। मझेप पाँच कदियों के विश्व में यहां कुछ लिम्पन्न की प्रावश्यता नहीं मागे बनकर प्रत्येक का विस्तृत ब्योरा द्धि का मानना: तुलसीदास संवत् १६३१ से १६८० पर्यंत कविकुञ्च-अमल-दिवाकर *गोस्वामी तुलसीदासजी का कविता-कान है। हिंदी का जितना उपकार इस एक महात्मा से हुमा उतना किली से भी नहीं बन पड़ा, बरन यदि दो तीन अन्य महानुभावों को छोड़ दें, तो बढ़ता से कहा जा सकता है कि अन्य चिन्हों भी परे एका वर्जन कवियों को मिलाकर भी एक तुलसीदास की समता नहीं हो सकती। धन्य वह समय था जब इस महात्मा का जन्म हुआ ! धन्य बह दिन था कि अब इसने हिंदी-माया में काम करना प्रारंभ किया ! इस नर-रत्न के रह से हिंदी-मारा और इिंदजाति कमी मुक्त नहीं हो सकती। संसार के किसी भी शादि के विषय में यह निश्चवारमक नहीं कहा जा सकता कि उसने तुबलीदासजी से श्रेष्ठतर कविता की है। अगरेजी कविता के दामरिण महाकवि शेक्सपियर (१६२११६७३)की उपमा प्रायः इनसे दी जाती है और कतिपय अंगरेज लेखकों ने मनसा-वश से इन भी कुछ बड़ा करना है। इसमें संदेह नहीं कि उसके हैमलेट, मैकबेथ, विंटसैटेल, श्राधेलो, किंगलियर, भूलियस सीजर, वेनिल कर सौदागर इत्यादि नाटक नामी और प्रशंसनीय हैं, पर तु कुल बातों