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मिश्रबंधु-विनोद

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मिश्रबंधु-विनोद पर ध्यान देने से गोस्वामीजी में उससे अधिक चमत्कार पाया जाता है । बिटर्सटेल में प्रेम और उसकी जाँच का अच्छा चित्र खींचा गया है, पर सीताओ के प्रेम-वर्णन के सामने वह फीका पड़ आता है । प्रायेलो में उसका संदेह एवं प्रायगो को धूर्ततावाला भाग मुख्यांश है. जो भानुप्रताप-कथांतर्गत कपटी मुनि के वर्णन से पीछे छूट जायगा । किंगलियर में कार्नीलिया का पितृप्रेम एवं गानरिख और रीगन की चालाकी तथा लियर पर उनका प्रभाव अच्छा वर्मित हुआ है, पर कैकेयी को कुटिलता पर दशरथ की दशा एवं श्रीराम के पितृप्रेमवाले वर्णनों के सामने बरबस कहना पड़ेगा कि किंगलियर किसी लड़के की रचना है । जूलियस सीजर. का. परम पुरुषार्थ छूटस की मूर्खता एवं ऐंटनी की वक्तृता है, पर इनकी प्रभा अयोध्याकांड के अनेकानेक व्याख्यानों के सामने एकदम मंद पड़ जाती है। मर्चेट श्रॉन वेनिस में संदूक खोलने में प्रणथी लोगों के विचार एवं न्यायालय का दृश्य अच्छा है। इनके . सामने स्वयंवर में राम द्वारा धनुष टूटने के समय सीता व उनकी माता के विचार एवं अन्य अनेक वर्शन कहीं बढ़े-चढ़े हैं। हैमलेद और मैकयेथ परम प्रशंसनीय ग्रंथ हैं; पर रामायण में अयोध्याकांड के वर्णन उमले कम कदापि नहीं हो सकते। शेक्सपियर ने कुल मिलाकर आकार में गोस्वामीजी से प्रायः ढ्योढ़ी कविता की है, जिसमें प्रायः श्राधा गद्य है। इस ग्रंथों में मानुषीय प्रकृति और नैसर्गिक पदार्थों के ऐसे-ऐसे उत्तम और मनोहर चित्र खींचे गए है कि उन्हें पढ़कर अवाक् रह जाना और उक्त कविकुल-मुकुट के सम्मुख सिर नीचा करना पड़ता है। उसने प्रायः सभी प्रकार के मनुष्यों की प्रकृतियों, विविध दशाओं, शृंगार एवं हास्य-रसों और अन्य कई तरह के चमत्कारी विषयों के चित्ताकर्षक वर्णन किए हैं, तथा कथानक-संगठन में अच्छी सफलता पाई है। शांत, बीर