पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१४३

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संक्षिस इतिहास-प्रकरण चाक्षरी श्रादि विविध ईद में मंथरचना को दान रामचंद्रिका सिजकर आनाई। विप्रिया द्वारा इन्हें हिंदी-साहित्य के प्रथम प्राचार्य की उपाधि मिन्दी रसिनिया एवं विनिया से भी हम इन्हें बड़े कन्दियों में प्रथम अमल शगारी कवि समझते हैं। कुछ मिलाकर यह हिंदी के परमोत्कृष्ट करियों में गिने जाते हैं और हमारे हिंदी-नवरत्न में इन्होंने मी ऊँश स्थान पाया है। यह वारेली के मिन्टन कवि के समान हैं। दोनों पूर्व विद्वान् थे और जैसे केशनदानमी संस्कन छोड़ हिंदी काव्य करने में कुछ बदा-सी बोध करते थे, वैसे ही मिल्टन भर बैंटिम त्यागकर अँगरेजी में भ्रथ-रचना करने में न्यूनता अवश्य समझते थे। इन दोनों की अवस्था भी प्रायः बराबर थी और इनके मरमकाल में एक विवक्षता यह है कि मिस्टन का देहांत सन् १६७५ इंसदी में हुआ और केशवदास का संवत् १६७४ विक्रमीय में माना गया है। इस उपविभाग में केशवदास को छोड़कर प्रवीरहराय-वैश्या, सालनदास, नाभादास, कादिरबा, अमरेश, मुलमणिदारू, मुबारक, बनारसीदास, उसमान आदि प्रधान कवि थे। नाभादासजी ने मम्माल में उस समय तक के भक्तों का वर्णन करके हम लोगों का बड़ा उपकार किया है। अमरेश की कविता बड़ी टकसाली होती थी और सामाहिदास की रचनाओं को स्वयं तुलसीदासजी बहुत पसंद करते थे । मुबारक की कविता रसमयों होती थी। बनारसीदास हैन कवियों में प्रधान है। इन्होंने कुछ गद्य मो लिखा है । उसमान ने जायसी की भाँति चित्रावली-कानक एक प्रेम कहानी कही । नृतीय उपविभाग में (१६७१-८०) लीलाधर, सुंदरदास, ताहिर, घासीराम, अटल इत्यादि सुकवि है। सुंदरदासजी स्वामी दादूदयाल को संप्रदाय के. सर्वोत्तम कवि हुए हैं। इनका कविता-काल संवत् १६७७ से प्रारंभ होता है। इसी कारण इनका यहाँ वर्णन किया गया है, नहीं तो