पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१४५

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संक्षिष्ठ इतिहास-महाशा দীৰ যাত্ব पूर्वालंकृत हिंदी ( १६८१ से १७६० तक) उन्नति अब तक बढ़े-बड़े कवियों के हाथ में भाषा क्रमशः विशेष उमति करती अाई थी, और इस समय के श्रारंभ से ही उसी परिपकता में कोई कसर नहीं रही थी, सो इस कार के अविनों का समान भाषा के अन्तकृत करने की और विशेष रहा और इस श्रम में वे पूर्णतया कृतकार्य हुए। इस उत्तम समय में हिंदी की और भी अधिक उति हुई और उसमें विविध विषयों के बीन की प्रथा दतर हुई। प्रतिम समय में जैसे अकबरी दरबार से हिंदी को लाभ पहुँचा था, वैसी ही अशागार और शाहवहाँ के दरबारों से इस काल के आदिम भागों में पहुँचना रहा । औरंगजेब के समय से उसके अत्याचारों एवं अन्य कारों से भारत में अतीयता जागृत हुई और हिंदुओं में शूरवीर उत्पन्न होकर चिंदू-सान्त्राज्य के लिये प्रसन्न करने लगे। ये लोग स्वभादतः कवियों का मान करते और वीर-कविता को पसंद करते थे। अत्तः विविध विषयों की परिपाटी ने और भी बन पाया और बोरकदिता भी हिंदी में बहुतायत से बनने लगी । इस उत्तम काल में भाषा एवं माय-संबंधी उऋतिय बहुत अच्छी हुई और मातीयता जागृति की पूरी मजाक कविता में श्राई। सौर-काल के भक्त कविता प्रायः बास्सल्य और स्लोभावों से कविता बनाते थे, सौ पूरे मन होते हुए भी वे श्रीकृप्या कर शृंगारात्मक दर्शन करते थे। वे स्वयं निर्विकार मनुष्य थे और उनके चित्रों में इससे कुछ बुरे माद नहीं आते थे, परंतु साधारण सांसारिक मनुश्यों से यह श्राश नहीं की जा सकती श्री कि उनके भी चित्त उस कविता से वैसे ही विकारहीन रहते। सो जैसा कि हम देख चुके हैं, तुलसी-माज से अमर दिनों का समय