पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१४७

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संक्षिप्त इतिहास-प्रकरण सेनापति एक बड़े ही अबूढी रचना करनेवाले सस्कदि ये । श्रापर्ने प्रायः घनाक्षरियाँ जिती है, क्योंकि छद चोरी जाने के भय से श्राप प्रत्येक छंद मैं अपना नाम अवश्य रखते थे और सधैयर में इनका नाम नहीं ला सकता है । अापने पट ऋतु सबसे प्रथम पुस्तकाकार परमोचरस कहा । हम इन्हें हिंदी का घटसपर समझते हैं। ऐसा उत्तम और अनुटा षट् ऋतु संस्कृत से इतर किसी अन्य भाषा के कवि ने नहीं कहा होगा । इन्होंने नेप-काच्य का एक पूरा अध्याय लिया है और इनकी माया यमक एवं अनुप्रासयुक्त, तथर परम भोमस्विनी होती थी। कर्वीद्राचार्य का नाम कुछ और था। बादशाह शाहजहाँ ने इन्हें यह उपाधि दी । इनकी भाषा में भी अनुप्रास का बाहुल्य है और यही हाल सुंदर अम् का है। पोहकर एक नामी कवि हो गया है। इसे कैद का दंड मिला था। सो इसने रखरतन नामक एक प्रेम-कहानी कारागार में ही बनाई, जिससे जहाँगीर के हुकम से यह मन कर दिया गया । तोषने १७१३ में सुधानिधि-नामक एक अच्छा नायिका-मेद का ग्रंथ बनाया । इनके उदाहरण साफ़ एवं प्राचार्यता माननीय है। चिंतामणि त्रिपाठी हिंदी के बड़े प्रसिद्ध कवि हो गए हैं। ये महाराज सबसे पहले शाचार्य है, जिन्होंने सांगोपांग साहित्य-दीदि वर्णन की है। इनके छोटे भाई भूषण और मतिराम भी भारी कवि थे, उन धोनों की यक्षता भी हिंदी-नदरसों में है । इनका वर्णन श्राने होगा ! नीलकंठ उपनाम टाकिरजी भी एक सुकवि थे। इनका अंय अमरेश-विलास खोज में मिला है। ओयसी का केवल एक छंद विदित है, पर उसी के कारण इसकी माता सदियों में है। अवश्य ही इसके और छंद अथवा ग्रंथ कहीं छिपे पड़े होंगे । बेनी ऋषि कईएक हुए हैं। इस समय के बेनी अझती के बंदीजन थे। इनकी कविता विशद और सानुप्रास है। बनवारी ने ओधपुर के अमरसिंह राठौर को प्रशंसा