पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११४
मिश्रबंधु-विनोद

________________

मिश्रबंधु-विनोद मिश्र (कविराज), कालिदास, रामजी, हरिकेश, घनश्याम, नेवाज और वृंद परमोचम कवि हुए हैं। ऐसे-ऐसे भारी करि इतनी अधिकता से और किसी उपविभाग में अब तक नहीं हुए थे । भूपण का ऋविता-काल १७०० के आसपास प्रारंभ होकर १७७२ तक . चला है, पर १७२० के पहले उनकी कविता प्रौढ़ न थी तथा १७५०. के पीछे उनके कुछ ही स्फुट छंद मिलते हैं। इनके कालनायक होने के कारण इनका वर्मन यहाँ होता है। इनका काव्य ऐसा उदंड और प्रबल है कि उसका जोड़ टूदना अत्यंत कठिन है। वीर रस को तो मानो इस महाकवि ने बिलकुल अपना ही लिया है और उसका प्रायः पहला ही कवि होने पर भी यह उसमें अद्वितीय है। अवश्य ही कई अन्य कवियों ने भी उक्त रस में जोरदार कविता की है, पर इन महाराज का सामना कोई भी नहीं कर सकता । इनके वोर-वर्णन को पड़कर रोमांच हो पाता है और कादरों तक के नी में उत्साह उमड़ पड़ता जैसी उत्तम कविता की, वैसे ही शिवाजी और छत्रसाल जैसे पुरुषसिंह इनको नायक भी मिल गए थे, जिनके प्रताप और आतंक-वर्शन करने में अतिशयोक्कि भी पीछे ही रह जाती है। जातीयता एवं हिंदू-म इस चिरस में कूट-कूटकर भरा था। इनको गणना हिंदी के बरमोच्च कवियों में है और हमारे नवरत्र में इनको पाँचवाँ स्थान मिला है। कविता ही के बल से इनका विभव राज के समान हो गया था । जहाँगीर के राजत्व काल में जन्म देकर इन्होंने आतीयता का जन्म एवं पूर्ण विकास तथा मुग़लों का .पतन एवं पेशवानों का साम्राश्य स्थापित होने के पीछे अपनी समी अभिलाषाएँ पूरी हो जाने के उपरांत १०२ वर्ष की आयु में शरीर त्यामा ! इन महाराज का नाम हिंदी साहित्य में सदा अपना रहेन ।