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      संक्षिप्त इतिहास-प्रकरण     १२३

रामचंद्र का समय (१८३१-५५); चौथा बेनी प्रवीन का समय (१८५६-७६) और पाँचवाँ पद्माकर-काल (१८७६-१८८६)।

          दास-काल
दास काल (१७६१-१८१०) में राजा गुरुदत्तसिंह, दलपतिराय, सीधर, शिवनारायण, सोमनाथ, रसलीन, रघुनाथ, ललितकिशोरी, ललितमोहनी, चाचा हित वृंदावन, गिरिधर कविराय, नूरमुहम्मद, ठाकुर, दूलह, शिव, गुमान, कुमारमणि भट्ट, सरजूरान, भुनाथ मिश्र, भगवंतराय खीची और शिवसहाय सुकवि है। 
मिस्त्रारीदास (उपनाम दास) का कविता काल १४८५ से १८०७ तक माना गया है । यह बड़ा भारी कवि था और इसकी भाषा ख़ूब मधुर है। चाहे किसी दूसरे का भी भाव हों, पर इनके वर्णन कर देने के पीछे वह भाव प्रायः इन्हीं का-सा हो जाता था। इन्होंने कई ग्रंथ रचे हैं, जिनमें श्रृंगार-निर्णय और काव्य-निर्णय प्रधान हैं। यह भाषा-काव्य का भारी आचार्य है । राजा गुरुदत्तसिंह सतसई बहुत सोहावनी कही है। इनके अनेक दोहे बिहारी से बिल्कुल मिल जाते है, एवं स्वतंत्र रीति पर भी वे परम प्रशंसनीय है । इनके दोहों में भाषा और भाव दोनों का सौंदर्य परम प्रशस्त व संक्षिप्त गुण दर्शनीय है । दत्त (१७३१) ने लालित्य-लता-नामक उत्कृष्ट अलंकार-ग्रंथ रचा। कहते हैं कि ग्वाल और पद्माकर इनकी नोक-झोंक रहती थी, परंतु ये दोनों कवि इनसे पीछे के है । इनकी रचनाएँ समकक्ष हैं तथा इनमें शब्द-लालित्य की प्रधानता है। दलपति राय और बंसीधर मिलकर काव्य करते थे। इन्होने भाषाभूषण की टीका बड़ी ही विशद बनाई और कविता अच्छी की। शिवनारायण ने य़ाज़ीपुर में एक पंथ चलाया और १ प्रंथ निर्माण किए। सोमनाथ (१७६४) इस समय का भारी कवि और आचार्य है । इसने निर्दोष कविता की और काव्यांगों का