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संक्षिप्त इतिहास-प्रकरण


इन्होंने सूत्रों की भाँति बहुत थोड़े छंदों में पिंगल का सारा विषय कह दिया । इनकी कविता सर्वदोभावेन प्रशंसनीय है । मनभावन अौर तीर्थ राज भी साधारणतया अच्छे श्रृंगारी कवि थे। सुदन-काल के कवियों में नायिका-भेद पर कविता करने का विशेषतया चाव रहा इस समय में बहुत ऊँचे दरजे के कवि अधिक नहीं हुए और दास-काल की यह समानता नही कर सकता, परंतु फिर भी अच्छे कवियों का इसमें अभाव न था ।

रामचंद्र-काल

रामचंद्र-काल (१८३१-१८५५) में मुख्य कवियों के नाम ये हैं- चंदन,कक्षानिधि,विश्‍वनाथ,मनगोपाल,मंचित,मधुसूदनदास,जोलसखी,देवकीनंदन,मनियार,हृदयनिवास,महाराजा रामसिंह भान,हठी,थान,बेनी और मौन । रामचंद्र पंडित (१८४०) का चरणचंद्रिका-नामक केवल एक ग्रंथ देखने में आया है, परंतु उसी में इन्होंने चकाचौंध कर देनेवाला पूरा चमत्कार दिखा दिया है। इसमें केवल ६२ छंदों द्वारा श्रीदेवीजी के चरणों का वर्णन बड़ी ही योजस्विनी भाषा में किया गया है और उपमा-रूपकादि द्वारा कवि ने इसमें सैकड़ों विषयों का ज्ञान पूरी तरह प्रदर्शित कर दिया हैं। चरणों के छोटे-से विषय पर ऐसी रचना देखकर इस कवि की कवित्व-शक्ति की मुक्त कंठ से प्रशंसा करनी पड़ती है। चंदन (१८३०) में बहुत-से उत्कृष्ट और रुचिकर ग्रंथ लिखे हैं। इनकी कविता सरस और मनोहर है। ये फ़ारसी के भी अच्छे कवि थे, जिसमें अपना नाम संदल रखते थे । एक बार शाह अवन्न ने इन्हें बुलाया, पर ये वहाँ जाने पर सहमत न होकर श्रीकाशीजी चले गए । जनगोपाल (१८३३) की भाषा और भावों में जो गंभीरता पाई जाती है, वह सिवा परमोत्तम कवियों के और कहीं नहीं देख पड़ती । मंचित बुँदेलखंडी (१८३६) कृष्णायन तथा सुरभी-दानलिला-नामक