पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३६
मिश्रबंधु-विनोंद

छोटे-बड़े बनाए, जिनमें एक नहुष नाटक भी है। इनका जरासंघवध प्रशंसनीय है। पजनेस (१६००) पन्ना-निवासी ने बहुत अच्छी और लोकप्रिय कविता की । इनकी भाषा बड़ी सबल, तथा भाव । बहुत ऊँचे होते हैं। थोड़े ही छंदों में इन्होंने भाषा रसिको पर मोहिनी- सी डाल रक्खी है। सेवक (१६००) बंदीजन एक प्रसिद्ध कवि थे । भाषा-प्रेमियों ने इनकी कविता पसंद की है। रीवाँ-नरेश महाराज रघुराबसिंहजू ने अनेक उपकारी ग्रंथ बनाए, जिनमें विविध कथा प्रासंगिक विषयो के सुहावने वर्णन हैं । शंभुनाथ मिश्र (१६०१) है । शिवपुराण चतुर्थ खंड का भाषानुवाद किया । ये कथा-प्रासंगिक कवियों में बहुत अच्छे हैं। सरदार (१६०२) ने कई परमोत्तम टीकाएँ गद्य में लिखी और कितने ही परम प्रशंसनीय पद्य-ग्रंथ भी रचे । इनकी रचना में एक अनूठ स्वाद है। महाराजा भानसिंह द्विजदेव (१६०६) वर्तमान समय के सत्कवियों में हैं। आपने बहुत-से टकसाली छंद कहे हैं, जो बड़े-बड़े कवियों की रचनाओं से मिलता हैं । कविता में आपका स्थान ऊँचा है। आप अयोध्या-नरेश थे । राजा शिवप्रसाद सितारे-हिंद ने शिक्षा-विभाग के लिये बहुत-से ग्रंथ खड़ी बोली गद्य में रचे और हिंदी का बहुत बड़ा पक्ष सरकार, मे लिया । आप उर्दु-फ़ारसी-मिश्रित खिचड़ी भाषा के पक्षपाती थे। कविराव गुलाबसिंह बूँदी के एक भारी कवि थे। इनका देहांत अभी हाल ही में हुआ । बाबा रघुनाथदास ने साधारण भाषा में विश्राम सागर-नामक कथा-प्रसंग का ग्रंंथ निर्माण किया । लेखराज गँधौली जिला सीतापुर के एक अच्छे कवि थे। आपने गंगाभरण आदि कई ग्रंथ सानुप्रास भाषा में बड़े ही भाव-पूर्ण बनाए । इस समय मे लेखराम एवं ललितकिशोरीजी को छोड़कर प्रथम और द्वितीय श्रेणी का कोई भी कवि न था, परंतु तृतीय श्रेणी के आठ-नव अच्छे कवि थे । पद्याकर-काल की अपेक्षा यह समय उत्तमता