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संक्षिप्त इतिहास-प्रकरण १३६

कविता और कवित्व-शक्ति का ह्रास होने लगा और व्रज-काल आता हुआ देख पड़ा ।

         छठा अध्याय
     वर्तमान हिंदी (१६२६ से)
अब प्रेस का प्रभाव और भी बढ़ा और उत्तमता हिंदी-ग्रंथ प्रकाशित होकर भाषा का उपकार करने लगे। इधर जीवन-होड़-वृद्धि, जाति-प्रेम और शिल्पोबति के कारण विविध विषयों पर पुस्तकें लिखने की प्रथा मे भी ख़ूब ही ज़ोर बाँधा और उपयोगी विषयों की ओर लोगों की प्रवृत्ति हुई । इस काल को हम दो उपविभागों मे बाँटेंगे,अर्थात् भारतेंदु-काल (१६२६-४५) और गद्य-काल (१६४६ से अब तक)। इससे यह न समझना चाहिए कि अब पद्य लिखने की प्रथा ही उठ गई, वरन् यह कि इस काल में गद्य की प्रधानता हुई है ।
          भारतेंदु-काल
भारतेंदु-काल (१६२६-४५) में बालकृष्ण भट्ट, बालदत्त मिश्र पूर्ण, नवीनचंद्र राय, तोताराम, देवीप्रसाद मुंशी, जगमोहन-सिंह, गदाधरसिंह आदू, श्रीनिवासदास, रामपालसिंह राजा, गोविंदगिल्ला भाई, रसिकेश, महारानी वृषभानुकुँवरि, ललित, सहजराम, जीवन, शिवकवि, हनुमान, नंदराम, गोरीदत्त, मोहनलाल-विष्णु-लाल पंडत, राधाचरण गोस्वामी, वगदोशलाल गोस्वामी, कार्तिक- प्रसाद, केशवराम, गोविंदकवि, अयोध्याप्रसाद खन्नी, शिवसिंह सेंगर, भीमसेन, बलदेवदास, गोविंदनारायण मिश्र, फ्रेडरिक पिंकाट, अदिकादत्त व्यास, बदरीनारायण चौधरी, भुवनेश, ग्रियर्सन, नाथूराम शंकर, चंडीदान, दुर्गाप्रसाद मिश्र, नकछेदी तिवारी, राम-