पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१७७

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संक्षिप्त इतिहास-प्रकरण चाहिए । इनकी गद्य एंव पद्यावली सभी रचनाओं में माधुर्य कूट-कूटकर भरा है ओर इनमें प्रेम एंव जातीयता की मात्र वासत्व में प्रगाड़ थी । यों तो पहले भी विद्यापति ठाकुर के ही समय से नाटक लिखने की रीति पड़ चुकी थी और कई मैथिल एवं अन्य लेखकों ने उसका अनुसरण भी समय-समय पर किया था,पर हिंदी-नाटक के वास्तविक प्रथम लेखक इन्हीं को मानना चाहिए, क्योंकि इन्होंने प्रायः १६ नाटक-ग्रंथ लिखे, जो अत्यंत सुंदर और प्रशंसनीय हैं । इन्ही के प्रभाव में वर्तमान हिंदी की इतनी उन्नति हुई है। इन्होंने प्राचीन और नवीन दोनों ही प्रथाओं की कविता उत्तमता के साथ की और कुल मिलाकर १७५ छोटे-बड़े ग्रंथ बनाय ।

         अन्य लेखक

बालकृष्ण भट्ट ने २४-२५ वर्ष तक प्रसिद्ध सामयिक पत्र हिंदी-प्रदीप का संवादन किया । हिंदी के ये बड़े ही प्राचीन ओर मान्य लेखक थे । नवीन बाबू ने सामाजिक सुधार पर ज़ोर दिया । तोता-राम ने एक नाटक रचा और वल्मीकीय रामायण के कई कांडो का साधारण पद्यमय अनुवाद किया । मुंशी देवी प्रसाद द्वारा इतिहास-संबंधी सामग्री हिंदी में एकत्रित हुई और जगमोहनसिंह ने अनेक प्रकोपकारी ग्रंथ निर्माण किए । श्रीनिवासदास नाटककार थे । राजा रामपालसिंह ने मरते दम तक हानि सहकर हिंदुस्थान दैनिक पत्र चलाया । गोविंद- गिल्ला भाई प्राचीन प्रथा के अच्छे कवि हैं । रसिकेशजी रियासत पन्ना के दीवान थे और पीछे से बैरागी होकर अयोध्याजी में महंत हों गए। इन्होनें २६ प्रशस्त ग्रंथ निर्माण किए । महारानी दृवभानुकुँवरी (धोदृछा) ने पदों मे प्राचीन प्रथा की भक्तिमवी कविता की । ललित ने चटकीले छंद-ग्रंथ रचे और सहजराम ने तुलसीदासजी के ढंग पर प्रद्धाद-चरित्र और रामायण बनाई, जिसके तीन कांड हमारे पास हैं ।