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मिश्रबंधु-विनोद

महामंडल के अच्छे व्याख्यानदाता और बड़े विद्वान् थे। मदनमोहन मालवीय ने हिंदुस्थान का संपादन कुछ वर्ष किया। आप भारत के एक अनमोल रत्न हैं और बड़े-बड़े कार्यों में लगे रहने पर भी हिंदी-हित पर सदैव ध्यान रखते हैं। युगुलकिशोर मिश्र अपने समय में हिंदी-साहित्य-विषय के प्रायः सर्वोत्कृष्ट ज्ञाता और सुकवि थे। गोपालराम उपन्यासकार हैं और गौरीशंकर ओझा प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता और इतिहासज्ञ हैं। श्रीधर पाठक ने खड़ी बोली की कविता पर विशेष ध्यान दिया। आप ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में प्रशंसनीय पद्य-रचना करते हैं। आपने पद्यात्मक अनुवाद सराहनीय किए और गद्य भी अच्छा लिखा है। विशाल ने हास्य-रस के मनोहर छंद रचे। रामराव चिंचोलकर और माधवराव सप्रे ने कुछ दिन छत्तीसगढ़-मित्र का संपादन किया।

विचार

इस भारतेंदुवाले समय में गद्य और पद्यलेखक गणना और उत्तमता में प्रायः समान थे, परंतु भारतेंदुजी को छोड़कर कोई भारी कवि नहीं हुआ। इस समय गद्य का बल दिनोदिन बढ़ता गया और अंत में उसका पूरा गौरव हो गया। पद्य-कविता की कला भारतेंदु के अतिरिक्त दिनोदिन मंद पड़ती गई और गद्य शनैः शनैः खूब परिपक्व हो गया तथा सैकड़ों उपयोगी विषयों पर उत्तम-उत्तम गद्य-ग्रंथ बने। समाचार एवं सामयिक पत्र-पत्रिकाओं की इस समय बहुत संतोषदायिनी उन्नति हुई और सभी प्रकार से उपकारी विषय हिंदी में लाने का लेखकों ने प्रयत्न किया। अन्य भाषाओं से अनुवाद इस समय हिंदी में बहुतायत से हुए, जिससे विविध विषयों का हिंदी-भंडार इस छोटे-से काल में बहुत भरा

गद्य-काल

गद्य-काल (१८४६ से अब तक) में प्रधान लेखक और कवि