पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१८३

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  1. किस इलेवा-झपूछ कुछ

कुपों का काम दिनोदिन अझ धोत्रा झड़ता है। कई क्षेत्र- में भी हिंदी को क्या मित्र या हैं । अयला के अरद्भिस्य- सम्मेलन द्वारा ॐ दक्षिा होती हैं उनमें मैं हिंदी का प्रयर कुड़ नूतन वृरिपाटी कुछ समय के क्षेत्र में प्रक्षन फ्रथा छोटे छोढ़कर अङ विधि विषयों पर ये ग्रंथ लिखने की और विशेषता ध्यान दिया हैं। इस ॐ इच्छा हिंदी में सभी उपयोग विषयों के ङाने की है। आज छ । ॐ ॐ अर्थ है हिंदी और परम प्रचुरता में भर रहे हैं, कोई देकर प्रत्येक हिंदी-मः अन अर्बइ सम्र की क्रंदों में। निन ड्रॉ है। पर वर्तमान को मैं इक्क यह मशविक दोय झीं झा मा है कि ३ ऑग अनुवाद ही अतिर छतें हैं, अथवा अन्य बाळे ग्रंथों का सहारा ढेकर हिंदी में पुस्तकें लिखनें हैं। आत्मनिर्भरतः और विचार-स्वतंत्रता केन्द्रका के लियें अत्यावश्यक उरुष्ट हैं। आजकल की लैंग्व-शैढी देखते हुए इन अनुप गुर्गों के इसन्न होने में कुछ को उठ सकती हैं। वर्तमान समय के मुदत झं में से किंलनै हुँ। अँगरेज़, बँखः, मराठी, गुजराती आदि अरे यार र ॐि गया हैं। इन परिषद के सिंथे येई सम, हिंदी के एक प्राचीन भी हदें पार भी, अहद-ऋद्धि हुए आ रूकती है। वैसे समय ॐ घेखें परावलंबी र्थों का चुना - कुछ स्त्रामविक है, पर यह देखकर शौक अवश्य औम हैं कि अई- इ. चेंडळ मी अपने मस्तिष्क में कल्न लेने में डरतें हैं और अच्छे अच्छे प्रसिद्ध ग्रंश्च हक में जूसरों की रचनाओं में प्रच्छ अथवा अकाश च र खाने कि आता है। अन्ना है कि हमारे लेखक: अनुप्रार्थन. कई बानि के फेर में पड़कर नूतन विचा- परदन एवं मस्ति-प्रबलता को न भूत झर्थे । कोई भी भाषा