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मिश्रबंधु-विनोंद

केवल नक़ल करनेवालो एवं पीछे चलनेवालों के पृथो से बड़ी नहीं हो सकती । | नवीन विचारों के समावेश से पश्चिात्य सभ्यता को भी प्रभाव हमारी भाषा पर पड़ रहा है, जिसमें परलोक के विचारों को छोड़कर . सांसारिक उन्नति-विषयक ग्रंथ इसमें इस समय बहुतायत से बन रहें हैं। पाठशालाओं के कारण भी हिंदी में विविध विषयों के ग्रंथ बनते हैं हैं। आजकल सभ्य संसार में समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओ का बल बहुत बढ़ा है। इसका कुछ प्रभाव हिंदी पर भी पड़ा है। हमारे यहाँ भी अब पत्र-पत्रिकाओं म बाहुल्य है, पर एक यह बड़ा दोष है कि बहुतेरे पत्र उन्नत नब्य विचारों को छोड़कर पुरानी लकीर पीटते जाते हैं। इसका फल यह होता है कि राजविद्या से श्रनभिज्ञ केवल हिंदी जाननेवाले पुरानी प्रथानुयायीं लोगों के विचार विस्तीर्ण नहीं होते। आशा है कि लोकनृति के साथ इस क्षति की भी पूर्ति हो जायगी ।

खड़ी बोली

हिंदी-पद्य में भी खड़ी बोली का अच्छा प्रचार हो रहा है, परंतु आजकल इसका कोई बहुत श्रेहं कवि नहीं है । यद्यपि कुछ महाशय इससे सराहनीय रचनाएँ अवश्य करते हैं। इस बोली में कविता करनेवाले श्रुति-कटु दूषरा को बिलकुल नहीं बचातें और बहुधा दीर्घात छंदों में केवल ह्रस्व अक्षर लिखकर दीर्घ का काम निकालन चाहते हैं, जिससे छंदोंभंग दूषरा आ जाता हैं। खड़ी होली के कदिवाण यांति-भंग दूषख से भी नहीं बचते । आजकल कवियों में पुरानी प्रथा को छोड़कर पुराने आचार्यों को आज्ञाओं से भी मुख मौढ- सा लिया है । यह बात सर्वथा अनुचित है । कविगण को प्राचीन प्रथा छोड़ने पर भी उच्छ् खलवा का दोषी न होना चाहिए । इन दो- एक दोषी के होते हुए भी नवीन प्रथा की कविता के इस पसंद करतें एवं आवश्यक समझतें हैं। इधर हिंदी में mysticism छायावाद