संक्षिस इतिहास प्रकारका अथवा अध्यामाद को लेकर भी कविता होने लगी है । अंत्यानुप्रास- होम अथका मिला दुक की कविता प्रचार भी बढ़ चला है." हिंदी में समय-समय पर श्रीर काकज भी अनेक प्रकार की इन्द्र- दियाँ हुई हैं, जिनका दिनदर्शन्द्र भाये होगा और उनके विपत्र में कुछ सातवा अध्याय • हिंदी का विकास हुँदी ने प्रारंभ से अब तक क्या-क्या और कैसे कैसे उचति की, इसन ब्योरेबार हाल झानिहास के सम्छत देखने से प्रकट होगा, पर एकही और इसका कुछ शान प्राप्त हो जाने के विचार से हम इस स्थान पर सभी समय के कुछ उदाहरस रसग्रस किए देते . इन्हें ध्यान से मनत करने पर सट रूप से विदित हो द्वारा कि हिंदी-लेखन-प्रणाली में समयानुसार क्या-क्या परिवर्तन होते गए। और बह कैसे कसे धारण करती राई । मछ, विभाग पूर्व प्रारंभिक हिंदी (संवत् १२२६ का नमूना ) स्वस्ति श्री श्री चीत्रकोट महाराजा-धोरामतपे राजश्रीश्री रावल- ही श्री समरखीजी बचनातु दायामा प्राचार कर सकेय कस्य थाने दल्लीस इत्यजे बाया अशी राक में प्रोपद धारी लेंगा घोषद अपहे माहकी बाकी है की अनाज में धार बंसर सल ओ दुजों आकेगा नहीं और थारी बैठक दक्षो मैं ही जी प्रमाहे परवान्न बरोबर : कार होगा । ( इसका सरस प्रचलित हिंदी में अनुवाद अध्याय में में दिया है।)