पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१८९

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संक्षिप्त इतिहास-अख राजा महासिंह (१३१७) । । उस छौंकृतें ही धोई सिनर कैसे झपटें ॐि ॐ ॐ; धूल से साथ द. जरी है केश खड़े के और ऊनौती उरूर घोड़े दौड़े क्या हैं उड़े हैं । छ वस्तु पहने दूर होने के क्वाह छटी दिन्हाई बैंः र्थः स अव बड़ी आन पड़ती है। । श्रीस्वामी दयादी { स्वद् ११३०) ये नुत्य हैं उस्म सस्य ई मिथ्या है इस मिथ्या है। अछादन कर सत्य अर्थ र अशा सम है । वह सत्य ही नहीं

  1. छाता च काय * *धान में अक्षय और स्वात्य के अधीन हैं रूई

कुम प्रकाश कि आय किंतु झों अर्थ है उस पैसा ही कहा, छिन्, और भाड़ा का इल हैं। भारतदु हरिश्चंद्र ६ १६२३ । महास फिर तोष ने अह म किया है ? अझ सयकों अन्य फैज्ञा सुना क्यिो । अब हिंदुओं को खाने-माझ है. अच्न देश में कुछ काम नहीं । रोज़र न रहुर : सूद ही सही है वह भी नहीं दो वरः । ॐ सही संकोई इइ सुन्न रोटी ड्री ॐ पुरा के खाले हैं उधम कीं और देखते ही नहीं । निरुवात में भी संतोय । बाढ़, सहश्यता दी । व्यहार के इन्हीं में मदद शिरः । फिर झा ष पन्थ है ख़ब लूट मचाई। अलत में भी है हर क्लि किन्छ । मान नै लो वेिल और ददन ॐ इतने नै म ६% नं- भ्रा कर दिया और सिद्धि में भी चुके है छु । पूरय है। पश्मि और पक्किम में पूरा पीछा करके हृय भएई भाई अ-नाक में लिया है। • छदै छ दूर न्न यवनिका भी है। अवनि माया के रूप । में खेला प्रचंड दब है कि जिस शुद्ध सनातन सहिद