पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१९३

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संक्षिप्त इनि-अक्ष्यको मोहचल्लाह झिं १ १२४६ } शंस को शुठि झाङ्किः ग्रीव ३३ टं हूँ । | चंद्र पुत्र इन क ि३ १२४ के पीछे पक्ष्यों हम सब ६ासै डर्ता । अने में बज्र छिर्य छ र । अर्ने र अरं सुरता माझी । विहें मजे ॐ भने छालुङ राइ । बिनै मैछि मैनात हैं और दैब्ध ; शिने नोहरं रद्द गिरनार सँध्यौ । झिर्ने संकिं थट्टा सुयो लिकं । अझै भनि सहिपाल रिक्शंभ देई । ( } उत्तर प्रारंभिक हिंदी १ से ३३४४-१४४४ } इति नारू १ ० १३५४ अब हर महिथ उडू बुर } अग्छ ल . इई अल . मूर।। अब छ हीथर्मी नै भनाथ । अझ झी स्टिर दे हाथ । . जहि । सं० १३४५ } . ईराछ वोरि हुराष्ट्र अनि खेतिर बंद छैधारि पद ।। ब्रड बैंद्ध पंढ हिँदुन हद चछि वीर विजैः तव । । बर १ ६ १३७ सिंह मनः सुपुरुष बच्न कठि झनै इक र ? दियो वेल्स इमीर होठ चढ़ च दूजी यार । अमीर खुस ० १३६ } • आदि कळे में सब पाऊँ । च्या कंटे में सब के । महात्मा बहोरखनाथ १ सुं० १४६) नीर रेमें देखा द बिथि रहें । सत्र सुरू होंय सो पुलया है। झवधू रहिछ हटे का रूख बिरळू की काया । तक्वािइ कम की जन यह कार की क्या है