पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/१९७

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अहि हैं बडा लङ भईरे हैं लश हूँ यही सिय जी । १६ ऋऋ है अटा प्रा लि है छि छि६ इट-क छ । ॐ ३ रद्ध रिडियो कह को ई मेट अल अहानी । श्रीस्वाई हरिदासुज्ञ । १६ =3) भयन्त जन स्वाति अब कृश्चिरं वि। झक कृमि कायदा को इक्षवेत आइन् । | किन हैं एक सनी सुसमा दुई की । .. अ ऋषिं तें? कई की बयार बुरे , एजें मान सन्ति ॐ ददिय उमड़े , रही हय निसर्च कहूँ मच्चि मैं रद की ग्दी रह्यो शिरिनु त अझ औ , | बौति गरे पूछ छपक रद की । छिमई श्रीतुलसीदासी { १६३१८० } पुछि बन्द कादरच अतिथे । ॐ बिऊ अव . दाने अइँथे । र छि हानिकहा क्लिन केरे ; इझ छरछ अन्य खेर ६ भाउँ जस से, सो ३ पुस दन्द बरनउँ पर देस्य । पुनि म अधुरज मान्न । पर अब कुनै हल इस का है। बहु शक सम विजय तेही इंतह कुरानक ड्रिल जेई । बचन बज्र जेहि हद पिचार ; अश्रू अन्यन अर का निहार है। हर हर अ रा रा है । पर अ% भट सकस बहु है । ॐ रद्द इबई अलर्छ । अर ईित धृत्व लिन के मन महेंद्र हैं।