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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद कबहूँ उमढ़ि अचानक आई । घन से धुमड़ लोह वरसावें । कबहूँ हाँकि इौलनि कुर्दै । कबहूँ चापि चॅदालनि बुटै । महाराजा अजीतसिंह ( १७६७) माड्दार-नरेश ।। पीतांबर कछन अछे, डर बैजंती मात्र ।। , अँगुरी पर गिरिवर धस्य, संग सबै व्रज्ञदा । | घनानंद ( १७७१) अइह देबी गनेस मईस दिनैसहि पृन्नत ही फज्र पाइहौं । प्राइ पावन तीरथ नीर सुनेकु अहाँ हरि को चित लाइडौं । खाइही अछे द्वितिन । अरु दोधन दान करों चर्चाइहौं ।' माइ अनेकन सों सजनी धननिँद मतहि कंठ लुयाइहौं । | महारज्ञा नागदास (१६७८० अमिळत सुजन भरि दरि दौरियक टेरि बोलावत औरि-औरि ।। कोड क्ले जात आहजै सुनाय मृद माय उठत भोगहि सुन्यय । अतिनै बिक जिनके सुभाय । जे मनत ने राजा रंक रवि । ते समिटि समिदि फिरि अन्य ; फिरि झाँहृत पद पददाय गत्य । " सीतल ( १७६० के लगभग ) हम सूई तरह से ज्ञान मुझ जैसा आनँद का कंद किया । सय रूप, सह, गुन, वैज पुंज हेरे ही इन में बंद क्रिया । तुझ हुस्न अभा की बाकी खै फिर धि ने यह फरमंद किया । प्रकाश, नजुहीं, नरसिस, चामीर, चपला बंद किया। .. पैजन । १७८६) :... क्षेत्र परी अज्ञ में खल भद्ध खळम में , - इ दल कॐ ॐ रहत निङ्ग थान हैं। और सुकवि कई माह सुद्धकनि सजि , .. चे देऊमृती. उछि सबवे गुमान हैं। ६ । ।