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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधुनोद न्याय काम रट हू दिस्त छि अरु रूप गुमानी । युदाबन ऋतु रूप झ्यिों बस सो कानून की रानी । शिरिरकविराय (१८०३ } . साई ये नरिधि, गुरु, पंडित, कवि, यार । बेटा, बना, पौरिया, यज्ञकरावनहार ।। अझ वनहर राज-मंत्री को होई , बिष्ट, प्रोसो, बैद, आपु के तपै रसोई ।। ऋछि गिरिधर कवियि अति चतुरन के ताई , इन तेरह ते तरह दिए बनि ३ साई । । । नूरमहम्मद ( १८०१).. ..। अहेव पवन हंट पर अनुरागे । इट छितरानि पवन के लागे । परी बदन परलट सदकारी । त्या दिवस भइ निःस अँधियारी ।। भोहि पद दरसन र चैरा : इनः वान धन आँखिन कैरा। यह मुद्ध, यह तिळ, यह लट मी ; त कहिलै गिरा भिखारी ।। | ठाकुर ( १८०१ } जा निरसहिनि रूम कि राति २ र ३ मा श्रादति है ? रहि बार बिॉकिं घरी-वरी सूरत त पहिचानत हूँ है । कुर या मल के पुनहि हैं ? मैं सनेह न मानत हूँ है । अश्वत हैं हित संरे हिचे इतने ३ विष ही जानते हैं। दी र सत चिन , अश्यालै लघु तन ; . . कई झूट असे क्रिया, बझुलझंडा । उपस्न का उपयता लेइ इ इइई प्रदीप शनैः । कुच से की जे. कुंभ है वे वृक्ष लोग वनों । उमा अाँ यथतः किं ताई अनादरै दूझ झन ; अखि नैनात ६ अन जौह करें इनके नाम सहित ऊंज बसें । .