पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७६
मिश्रबंधु-विनोंद

१६६ मिश्रबंधु-विन्द अहि-त्रएई पुनः पर पड़ी क्षेत्र में हैं । ६ के छिल ने नहीं एक छिन मैरे अछू उर्वरः । वयात मात्रा हुआ यौन हैं हम उन्नति पर दुखदाई । त्य सङ्घी न ई अन्य रितु में मेरी गरिंभ प्रभुलाई । वास इयालु नै हो बिचे थे झा न-मन्नि सम्मान । सल्ला न्य %ि कैसे उसले दयों का अपमान है। | रघुनाथलाद ( १६६० वर्तमान ) अग्रह धब्द ॐ ध्वजा नहर की प्रबिसि रहीं अन माहीं । कैघ में हिस पूरित भूवर जहँ तहँ हुँ। लाहौं । रैनि उशारीर अटो क्षत्रे ॐ ॐ मन मैं भ्रम ब्याप्य ! अमरत गरेरधन गिरि कोड अन करि लै इत थाल्यो । | मैथिलीशरण गुप्त १ १६६२ वर्तमान ) है ॐ झापछि आगे वह अटल नहीं, शीध्र ही नष्ट हो । केहिं श्री अग्रक्री य अक्षय तुझ सदा और सुस्पष्ट होगी । ३२ क्या करूयोर्भ में हैं अद्विरः रेहूर्त सोम को मेघमाला । होत हैं अंत में क्या अळ्ट बह नहीं और भी कॉतिवद्धा । लोचनप्रसाद पांडेय ( १९६२ वर्तमान जिंस कुज़ में जात, कात्र में ख्यात हुये हो । . किस इका. आत एक से सात हुॐ ॐ । .. उसका उदय उपाय इथि यदि तु न भाय । त्र्य डु नर-जन्म हुई निकाल्न यह काया । ... बंधु अर्य को देर न करना जिसने सीस्मा । . के इयवहार में करना सिने सीस्वा । छाछ-दे-पाई ३ का सिने स्वा । । .