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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-बिन्द उस सुरक्रार न करके अर्थी को ही प्रधान सत्ता । इधर कृभ, अज्ञभा छ प्रयोग करते थे। इस प्रकार कथा-सरि दियो में तुलसीदास कर अनुगमन हुअर और झुरा कविताओं एजे स्कुट विषय पर ब्रजभा का साम्राज्य कैडर । यही दृशः उत्तरालंकृत-का दुक रही और भाषा दिनोंदिन अलंकृत होती गई, यहाँ तक कि अलंकार-वृद्धि से अदितः ॐ शरीर-श्नति होने लगी । इस भारी काल में ॐवद्ध मुनिच्च { सं० १७८० } ने खड़ी बोली का अच्छा सल्मान किंवा } परित्र-छान में खड़ी बोली को बल कुछ-कुछ स्थापित हुअा, ३ अधुनिक यड़ में कुछ बढ़ा और भविष्य में इसके बढ़ने की आशा है । अब मातृभूमि-माहात्म्य, भ्रातृ-प्रेम आदि पर भी दिय का ध्यान गया है । छायावाद और तुळांत- ही कविता का भी प्रचार हो रहा है। परंतु कुछ दिनों से पद्य-विभाग में कुछ शिथिलता अती देख पढ़ती है। श्रुति-कटे का भी अब प्रयोग बढ़ रहा हैं, जिससे प्राचीन प्रयानुयायी लोग खड़ी बोली ॐ दोष देते हैं। वर्तमान कविय ॐ उचित है कि भाषालंकारों की भरमार तो छोड़ देवें, पर गुण-दोषों पर अवश्य ध्यान रखें। हिंदी- दाजा की प्रधान गुण श्रुति-मधुरता है । इसका जाना उचित नहीं है । प्राचीन प्रथा के कवि अब झी ब्रजभाषा में रचना करते हैं। इनकी बहसमा अद तक बड़ी बोली वाले कक्यिों से अधिक हैं। हा या संछिप्त इतिहास यहीं समाप्त करके अब हम विनोद के मुल्यांशु को इश्वरी है।