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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबेधुझिोंद हिंदी की उत्पत्ति जालने के लिये इसके चूदवाली भाषाओं को कुछ अन्न आवश्यक है। आदिम अवार्य लोय तिब्बत, उन्न

  • द, दझिरो रूस, मध्य-शंशया में से चाहे जहाँ से आए हों, पर

पहलेपइड ३ स्वीकद और बदशाँ मैं पहुँचे । वहाँ से कुछ र ऊपर की, श्रद बस् चे श्रेयवर्त को घलें आपस ! ऋ8- वाले अझ व् वा ॐ परमिक और मड़ि-दामक दो अंद हुए । 'अकि भा ढ़ते-बढ़ते पहजची ही समय पर फ्री ॐ गई। ढिभाई अझ अदु पश्चिमी एक्स ३ को कार्ती थैः । पारसियों का प्रसिद्ध धर्म-अंथ 'अदस्त इसी भा में किया है । खोकुंद श्रादि से चलते-चलतें सैकड़ों वर्षों में अर्थ काम पंजाब पहँ । उस समय तक उनकी भाषा का रूप डिक अति अस भर से बदल र पुराना संस्कृत हो माया का हैं इस में ऋग्वेद ॐ पुन ऋचाएँ लिखी गई और इसी कारण ऋग्वेद के प्राचीन राम भार क्र ाष्ठ अवस्तु को नाषा से कुछ-कुछ मिलती है। पंजाब ॥ श्रने से आय की पुरानी संस्कृत वहाँ के आदिम दिवासियों की . लाए हैं, जिसे पहली प्राकृत करू सकते हैं, मिलने लगी । यह बाङ- " बड़ दे झार्यों में अपनी अ य संस्कार करके उसे ब्यकिछ द्वारा नियन-बद्ध कर दिया । इस प्रकार वर्तमान संस्कृत का झन्म हुआ । यह भाषा पुरानो वैदवादी संस्कृत से कुछ-कुछ भृक्ष है। अर्थों में अपनी से में शुद्ध एवं पृथु बस्छने के लिये : उसे नित्यम्-बद्ध तो कर दिया, पर संसार का स्वभाळ नाव : किमी ॐ श्री के नहीं रुकता ! झार्यों में भी प्राकृत ॐ संस्कृत में नहीं घुसने दिया, पर समय पर झार्यों और अन्

  • संपर्क की विए वृद्धि से स्वयं संस्कृत पुरानी प्राकृत में शुरू

द्ध और इस प्रकार रानी झाल ते-थळे मध्यवलिंनी प्रासे अदुवा भाषा हो गई, झडे अशोक के समय अचखित थी ,