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मिश्रबंधु-विनोंद

१३ मिश्रबधु-विनोद च्छितांत पृथक हैं, पर यह पार्थक्ष्य धीरे-धीरे ग्राम-ग्राम प्रति बढ़ते- बढ़ हुआ हैं और यह नहीं कहा जा सकता कि अमुक स्थान में : अथर्धः भार समाप्त होती है और मैथिलं का प्रारंभ होता हैं, अदा धिड भारा समाज होकर बंगाली चढ़ती हैं। ठीक यहीं : दई सम्मानुसार प्रश्न के हेर-फेर की है। अतः हळूह यह नहीं कहा सत्र सका कि हिंदी का उत्पत्ति-काल क्या है ? : म्हें प्रकार से ही उच्च प्रायः ६०० संवत् के लगभग समझ न्या, क्योंकि भाभा के प्रथम ग्रंथ का समय संवत् ७७० हैं। हिंद-साहित्य का विषय उठाने के पूर्व यह उचित समझ पता है कि काब्रूक्ष का निश्चय कर लिया य । इस विष्फ्य में बाबू अगन्नाथदाल रत्नाकर ने साहित्य-रत्नाकर नामक ग्रंथ रकर बड़ा उकार किया है । इस ग्रंथ में कई लक्षण पर दिचार किया गया हैं, जिनमें से एवं अन्यत्र प्राप्त प्रधान-प्रधान लक्षणों की हॅम अाँ ऋन करते हैं- {१} तदूदौथौ शब्दावर्षी साधनलङ्क ती पुनः छापि (काव्य-प्रकाश) काय वह है उसके शब्द इदं अर्थ श्रदोष तथा गुणसंपन्न हों, चाहें उसमें कहीं-कहीं स्फुट अलंकार भी न हो । १२) अद्भुत अक्यहि ते अहाँ टपअन अद्भुत अर्थः । । कोकोचर रचना रुचिर सो कहि काब्य समर्थ । ( साहित्यपरिक्य ) : ६३ } रस युत व्यं स्त्र प्रधान का शब्द अथ शुचि होय । ... उक्लि युक्त भूषा सहित काब्य कहावै सोय ।। |: : .( साहित्यपरिचय } (४} ब्यै समान्यम् } { हाहित्यमा } { समर्थप्रतिमादकः शब्दः वाच्यम्। (अनाथ पंडितरावा) {}को काम सकीय ॐ अव्य झार्दै सोय । ( रक्षा