पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७) उस हैं अद्द सुन्न सुदन शब्द ४ अर्थ कछिन्न ।। | अङ्ग द मैंने कि मुझि ८ अहू चिन्न । ( =) :नंदू अश्वः पनामा . । ६ अंदर ब्र} ६ ६ ६ का अध छः क हैं अड़े रमन्य ६ अंशः | मिरलु शरिल का कब्छ झ६ सय ।। । । हुम खोंड } भून ड अशी पूछ लियर में कैछ पल के एक पन्ना छि कि किसी अन्य क्षर मैं इ अफ्छ है ॐ ॐ ॐ टुछ छुट | कह रहें और ई वाहिर उसमें एई के ? इन्हें अवगु | ॐ अख्यप्ति और ऋतिक्रालि हूं ऋहनें हैं। हर छ वय वस्तु प्रत्येक तरह करें इझकर उसके विष्य में अपना मत प्रकट अरे । । {१} तोय शब्दात्र स्वीकृती पुनः काई । इस लक्षणानुसार काव्य की निर्दोर हो अबश्यक है, अर्थात् इस इल से सर्द रचना झा नहीं है। उधर प्रपद् आचार्य कुलपति मिञ * ऋहा है कि " कथेत ने अट में इंश्वा न ।” यदि इस अथन की अत्युकि भार हैं, वे भी प्रति सैंकड़े ३५ छंदः ॐ ई-न-ई दें दिखाया हा अतः है । अतः इस क्षः । की मनुष्य-देह के झार्ने, रन् अदि में समानता कर सकते हैं, अन् सुचारुङ दोशों को अक्षारको । के समान समझ सकते हैं। किसी कार का कोई भी रोग न इ । ऋ: रई कर देह में देह