पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२२१

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ला भूरि ३ का ६ हाँ हे ॐ इक्छ

४ ४ का का ॐि ॐदन अदृश् = अह झकर उज्य निन्द्रा हैं । कि और शुक्ल कुटुझ, शुद्ध. अतःकर, 'स्लिपराधी द ई ऋ३ दक हैं । इद शब्द विशेष्य के लिये इस शुद्ध अर्थ मात्र ॐ ॐ ॐ ॐ अयं समझ में नई अलर ! भा में क्रिस * ६ सय ऋ बदल झते हैं । इय किस झवा ॐ सुद्ध न हैं ? आदि इलंधर समय ॐ प्रचन्ड रू. ॐ कुछ मान्ने, के हो आह अस्त न होनी है बिशल श्रुति-कटु अचाने आई अनेकानेक अन्य कार से हैं विकृत रूपश्च शब्द का प्रय कई हैं। बी इन में से कितने हैं। द मिलगे, एरंतु बडू रह इहा जा सकता है कि जिन छंदः ॐ ॐ अव्द अके, वह् । नहीं दिखाई ! उ ऋच्य न मानतः इलुन्छ है । इयंन्य का हैं ट हैं कि न त । स्य ज्यू- थका हुन् जा र, रे । ३-ॐ ॐ ॐ ईमान ऋथ कब्र अवश्य सब्द जाता , क्ष्य छयु कब म ॐ ॐ था । स्वासवः उत्कृष्ट अड्छि ः अत्रः अछि इंसद है । इ के ऊपर लिल्द झा हुआ है, अडंकुर • ॐ चिये अायॐ न है। बहुतेरे नष्ट छंद में * अलंडर नहीं होतें | नुतरां, इस अक्षवाट का कोई भी दुष्ट अवार्थ नहीं है।