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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद : संभव था किंतु ग्रंथ में समय साफ़ दिया है और ध्यानपूर्वक देखने से भाषा भी संदिग्ध है। उदाहरण-- संबन कर अब करी खाना ; सहस्र सो संपूरन जामा । मञ्च मास, कृशा पख भयऊ ; दुनिया रबि तृतिया जो भयऊ। तेहि दिन कथा कन मन लाई ; हरि के नाम गीत चित आई। सुमिरौं गुरु गोबिंद के पाऊँ । अगम अपार है जाकर नाऊँ। कईं झाम युत अंतरजामी । मगत भाव देहु गरुड़ागामी । सुना दी है कि संवत् १०७१ के लगभग जय सुलतान महमूद ३६ ३) राजा नंद कालिंजर-नरेश पर आक्रमण किया था, तब आज मैं उसकी प्रशंसा की एक इंद्र लिखकर भेजा और सुलतान ने प्रसन्न होकर कालिंजर की चढ़ाई उठा ली, तथा १४ किले और राडर के दिए । परंतु हमें फ्रिरर्दैसी का हाल स्मरण कर इस बात पर विश्वास नहीं होता ! अस्तु । बाम---( अ ) जिनबल्लभ सूरि । प्रथ- हू नचकार । रचना-का-११६७ के पूर्व । । विवरण-सं० ११६७ में जैन श्वेतांबराचार्य श्रीअभदेव सूरि के पद पर चयै हुए तथा इसी वर्ष इनका देहांत भी हुआ, आप इचे प्रभावशाल तथा पंडित थे। अपने संस्कृत तथा प्राकृत में . बहु ग्रंथ हैं। ... । कि कप्पतरु ३ अथवा चितड़ भय भितरे किं चिंतासशि कामधेनु राही बहु परि । चित्रावली काज क्रिसे देसंदरलंधर

  • रयछु आहे कारण किसे सायर उइंघउ ।

औदइ पूरः; सार युगे एक बचकार । ।