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मिश्रबंधु-विनोंद

लेक्निई इनमें से प्रथम स्लेव में राजपूतानी भाषा का संसर्ग है और द्वितीय इस समझे ये साधारण हिंदी में हैं। इस समय देश में कविता * भी अच्छी इ ईई, जैसा कि चंद बरदाई के रासो में प्रकट है। चंदे कवि का समकालीन { ९ } जनक बेदीजन भी था, जो महोबा के राज्ञ परिमाल के यहाँ रहा था। इस कवि ने न्हा झकया था, जो अब तक गएर तिः ३, पर अब का हा केवल इंए में श्यद गनिक से मिलता हो । जगनिक को शुक भी इंद्र अब नहीं मिलता। इस समय के एक ६ १० } केदार कवि का नाश शिवसिंहजी ने लिखा है, एर उसके अस्तित्व का कोई पृष्ट गुमाल नहीं लतः और में उसकी कविता ही देख दी। छिसिंहसद्धि में कब्र के राज्जा बरवे सीता को भी कत्रि मान बयर हैं, परंतु इस नाम को वेई राज्य कीज में इस समय नहीं हुशः ।। ११ } वारदरबा-नामक एक भाट कवि महाराज जयचंद जी के साथ शृङ, पर उसी भै कविता इस्तगत इह। होती है। स्त्र में केवाले एक अनन्य दर की कविता पृथ्टकट राजा के मय में लिखी है, जिसका काल संवत् १३२५ में कहा वादा है। उदाहरस्- | का झोत सुद्धा नूड़ कार का होत रखाए जदा-भार । के हो भामिनी ढले । ल न चित थिर जुरै जोः । . हि चित्र के सुमिरनझार पर साधे सुद लोकदार ! .५ १.०१ छ । यह पृथिचदाज । इहि समन शान तम हैं इलाज है । अह पर बिलकुल अधुनिक है और उस समय की नाही हे सकी। बाद एकृा है। पृथ्वीच-बाम से सरहेजार को पृथ्वी छल कर के अंदर, अतः उन्होंने इदा प्राचीन संवत् लिख दिया । कविही हास्तव में अक्षर अनन्य हैं, जिनका दर्शन उचित स्थान पर इस इंश्च में मिलेन्दः । देकृत रासो से प्रकट होता है