पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२१४
मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद लगा है। आशा है कि आगे चलकर अन्य उपयोगी बातें भी विद झॉगी । इस काल के दो मुसलमान कवियों की भी इचना मिली हैं। पूर्व काल में राजाओं के यशङ्कीर्तन की प्रथा हिंदी में झुरमा स्थिर थी । इस प्रणाली पर इस काल में भी कुछ-कुछ अनुगमन हुआ । धर्म-अंब लिखने के इंग ने महात्मा गोरखनाथ में दिशेए अल पाया । वाऊद ने एक अॅम-ग्रंथ रचा और खुसरो ने खड़ी बोल्ली में भी इच्छदा की । अतः इस उत्तरकाल में राजयशान की चब्त कुछ शिबंद्ध हुई, धर्म-ग्रंथों के प्रचार का प्रारंभ हुआ और प्रेमकहानी झिक्ने की जड़ पड़ी । ग्रयः ये सब. शात पृथ्वीराज-रासो में वन- मान हैं, परंतु मुख्यतया वह नृपयशकीर्तन झा ही अंथ है । उस काल में यद्यपि ऐसे कवि गन्ना में अधिक हुए कि जिन रश्वा अब तक मिलती हैं, परंतु पुर्व-काल का रासो कुछ ऐसा ग्रंथ है कि जिसकी तुलना इस उत्तरका की सब पुस्तकें मिलकर भी हूँ कर सकती छ हाँ इतना अवश्य है कि इस समय में लेन-शस्वी के बहुत उन्नति पाई। अब तक कोई विशेष भाषा हिंदी में स्थिर नहीं हुई थी । खुद प्राकृत मिश्रित भाषा में रचना करता था । छे इस इतरका में अवौ, ब्रजभा, राजपूतानी, पंजाबी, खड़ी बळी अादि सभी माषाओं में कृवियों ने यवता रची १ मङ्कामा गोरकलाई ने पूर्वीय प्रांत के निवासी होने पर भी गश्च में ब्रजभाषा का प्राधान्य चम्खा | हमसे विदित होता है कि इस समय अवधी मद्य या विषय प्रयोग में में नहीं होता था, परंतु प्रजभाषा में शय-ग्रंथ लिवा जाते थे, जिनका अभी तक पता नहीं लगी हैं। गोरखनाथी प्रश्रम प्रसिद्ध श्राक्ष करे हैं, जिन्होंने हिंदी को आदर दिया।