पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२२०
मिश्रबंधु-विनोंद

१३० मिश्बंधु-दिलोड । (३३ } उभापति मैथिल कृवि विद्यापति के समकालीन १४२७ ॐ क्रूझग हुए हैं। इनकी कविता बिहार में प्रसिद्ध है और अझै लश्क-भिंयता को प्राप्त हैं। इनके इंद विद्यापति के ही समान हप्ते में, अहँ तक कि इन दोनों महात्माओं की रचनाएँ ऐसी मिल गई हैं कि बहुथा उनका श्रद्धय करना कठिन हो जाता है। | १३४ } भीमा शरण कोलाबाले का समय १४६१ सुन पड़ा है। इनकी अंवता देखने में नहीं आई। ३५ } महात्मा कबीरदासजी । • य क चंद बरदाई और विद्यापति ठाकुर को छोड़ कोई काश नामी ऋधि हिंदी में उत्पश्न नहीं हुआ था, पर अब सुके अन्य सुसिद्ध कवि का प्रादुर्भाव हुआ । संवत् १४७५ के लगभग भहात्मा कीर कास्जदं का समय है। इनके बनाए हुए अमर भूल, अनुसार, : अग्रज्ञानमूलसैद्धत, ब्रह्मानरूपा, हंसमुक़ावली, कबीरपरिक्षय की झारखी, दावली, पद, साखिया, दोहे, सुखनिधान, गोरखनाथ । की गई, कबीरपंजी, लक्क ी रमैनी, विक्कसागर, विंचारमाल, कायापंजी, राम्रा , पहर, निर्भयशान, कवर और धर्मदास की मोष्ठी, अगाध मंग, बर्खॐ झी पैज, ज्ञानचौतीसा, कबीरअष्टक, मंगल शब्द, रामानंद की गोष्टी, आनंदरामसागर, मंग, अनाथमंगल, अक्षर मैदी रमैनी, अक्षरखंड की रमैनी, अर्जनामा, आरसी, अर्क को अंद, छप्पय, चौका बर क रमैनी, ज्ञानगुदरी, ज्ञानसार, झामस्वरोदन्छ, कबीरराष्टक, करमखंड की रमैनी, मुहम्मदबोध मस्- माहात्म्य, पिंथा पहिचानबे को अंग, पुकार शब्द अलहटुक, साध के गा, सतसंच की अंग, स्वाँसगुंजार, तसार्बत्र, जन्मबोध, ज्ञान- अधि, मुसहम, निर्भयान, सतनाम था संतकबीर, बानी, ज्ञानस्तोत्र, है, हवा झ्वीर यंदै छ, शब्द केशावली, उग्रगीता, बसंत, हौली, रेकर, अमृद्धवा, लस्टर, हिंझे, शब्द, सगरो, रागभैरव,