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मिश्रबंधु-विनोद

कीयौ कवित्त ए मंगल कारज्ञ विचन हरख } : . सहु पाप निवारल कोई मत संशवे घरो मनै । जिम-जिम सेवै सुर नर राथा श्री जिन कुशल मुनीं । सर कया जश्र सायर उबकाग्र युखै । • इम जो सदबुरू गुरू श्रमिनन्दे ॠध्दि समृदै| सो चिंरनदै मन वंच्छित फल मुझे हुदो हु ।। नाम-(४९/२)- ग्रन्थ-विधाविलास रास| रचनाकाल-१४५९। नाम-(४९/२) दयासागर सूरी । ग्रन्थ-धर्मदत्त-चरित्र । । रचनाकाल-१४५९| ३६ } विष्णुदास ग्रोएचलगढ़ ग्वालियर में रहते थे, जो कि उस समय पांडववंशी राजा डोन्गरसिंह के श्रधिकार में था । इनका समय ९४६२ हैं। ग्रंथ इनके प्रथम त्रैवार्षिक खोज के अनुसार के हैं । महाभारत कथा, १२) स्वर्गारोहख, (३) विक्रमखी मंगल । { ४० } रामानंद ने रामरक्षा संवत् १५०० के लगभग रची। यह कबीर के गुरु रामानंद से इतर हैं। ( ४१ } कमाल काशीवासी का समय ११०४ था । ये कबीर- दास के पुत्र थे। कबीरदासजी का व इनका मत नहीं मिलता । इसी कारण किसी कवि ने यहाँ तक कह दिया है कि 'डूबा बंस कबीर का उपजे दूत कमाल'। परंतु इन्होंने कबीरजी का नाम जहाँ कहीं लिखा है वहाँ कुछ निन्दा-सूचक वाक्य नहीं लिखे । नहीं मालूम कि उपर्युक्त बात क्यों प्रसिद्ध हुईं