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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद | ( १४ } धरमदास धरमदासर्जई कबीरदास के शिष्य थे । इन्डने कदीर के इन्द भंथ, निर्भय ज्ञान और ऊधीरबानी-मक तीन अंथ बनाइ ।' | सरेंज में ११२ में झाड़वार के महाराजा उदयसिंह का नाम अंक में लिखा है और यह भी लिखा है कि महाराजा गजसिंह इनके पुत्र और महाराशर जसवंतसिंह पौत्र थे। परंतु महाराजा गजामंह के पिता का न महाराब्दा सुरवह था और उदेसिंह १३५० संवत् में सिनारूढ़ हुम् थे । ये महाशय सृसिंह के पिता थे । दाङ ३ इमके कवि होने के विषय में कुछ नहीं लिखा है, अतः इनका कवि होना संदिग्ध हैं। नम---{ ४४ } उपाध्याय ज्ञानसागर जैन । अंथ-श्रद्दाल-चरित्र । कविताकाले---- १५३१ । उदाहर

  • अंमल जोदेखि अरे सिद्ध सुयल पदव ।

श्री श्रीपख नरेंद्र को रासदंध पभणव । भाव भावे नित जसो श्रीगुरुदेव सूर पाय ! ताप स्वस टू रस र शान सागर उवा । अनर एकत्र ये सियासिरे उजत्नी जंज गुरु बर । हान्स रच्यो सिद्ध वझ वो श्री स्वकार । सिङ चङ महिमा सुखी भक्यिा अ धरेवि । मन छत फल दृश्यक हैं जे सण नितं अब । एक अना. ॐ. नित ३५ ते घर मैले राल । अछि अनंत भगवै जिम भूपति श्रीमदछ । { ४५ } चरणदासी

  • महात्मा चव्हास के संदत् ११३७ में ज्ञानस्वरोथ-लाम छुः